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हुआ है उसी प्रकार नीतिवाक्यामृत में भो अपने पूर्ववर्ती समस्त आचार्यो का परि भाजित रूप प्रतिलक्षित होता है। कौटिलीय अर्थशास्त्र की भाँति नीतिवाक्यामृत मी एक मौलिक ग्रन्थ है । >
उपर्युक्त समीक्षा के माषार पर प्राचीन राजशास्त्र प्रणेताओं में सर्वप्रथम स्थान आचार्य कौटिल्य को तथा द्वितीय स्थान आचार्य सोमदेव सूरि को प्रदान किया जा सकता है । सोमदेव से पूर्ववर्ती होने पर भी नीतिशास्त्र की रचना के क्षेत्र में आचार्य कामन्दक का स्थान तृतीय सिद्ध होता है' ।
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९. की० अर्थ, १.१ -
पृथिव्याला भे पालने च सावन्यर्थशास्त्राणि पूर्वाचार्यः प्रस्तावितानि प्रास्तानि मर्थशास्त्रं कृतम् ॥
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नीतिवाक्यामृत में राजनीति