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कामन्दक ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के विषय में भी विस्तार पूर्वक प्रमाणा गाला है। उन्होंने दूत एवं चरों का भी वर्णन किया है । वन के अनुसार दूर तीन प्रकार के होते है, निस्वार्थ, परिमिताथं अपवा मितार्थ और शासनहारक।' परों के विषम में वे लिखते हैं कि पार ( चर ) रानामों के नेत्र के समान होते है । राजा को उन्हीं के द्वारा देखना चाहिए । जो उन की आँखों से नहीं देखता वह समतल भूमि पर भी ठोकर खाता है क्योंकि चारों के बिना वह अन्धा है। जिस प्रकार मात्विक सूत्रों के अनुसार कार्य करता रहता है उसी प्रकार राजा को भी चारों के परामर्श से ही राजकार्य करना चाहिए। कामन्दक ने मण्डल सिद्धान्त की ज्यास्या बड़े विस्तार के साथ की है और उन्होंने भी कौटिल्य की भांति १२ राज्यों का माल माना है। कामन्दक तीन शक्तियों के सिद्धान्त में भी विश्वास रखते है। उन्होंने मी उत्साक्ति, प्रभुशक्ति एवं मन्त्रशक्ति का उल्लेख किया है। कामन्दक ने कौटिस्य को भौति ही अनेक प्रकार की सन्धियों का खल्लेख नीतिसार के ९३ सर्ग में किया है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि नीतिसार भी राजनीति का एक महत्वपूर्ण अन्य है । मौलिक रचना न होते हुए भी वह अपने लंग का भपूर्व एवं प्रामाणिक प्रय है। नौतिवाक्यामृत
कामन्दक के पश्चात आचार्य सोमदेव ने ही शब राजनीति प्रषाम अभ्य का सृजन किया । सोमदेव का नीतिवाक्यामृत अर्थशास्त्र की कोटि का ही प्राय है, जिस में राजशास्त्र के समस्त अंगों पर पूर्ण प्रकाश डाला गया है। यद्यपि यह अन्य कलेवर में कौटिलीय अर्थशास्त्र की अपेक्षा लघु है, किन्तु रचनाशली में यह उस की अपेक्षा सुन्दर है। इस के अध्ययन में मधुर कास्य के समान आमन्द प्राप्त होता है। सोमवेष को सुन्दर वर्णनशैली के कारण ही उन के अन्य में राजनीति की शुष्कता महीं आने पायी है । गम्भीर एवं विस्तृत वर्णन को सोमदेव ने सरल एवं पोधे शब्दों में ही व्यक्त कर दिया है।
____ आचार्य सोमदेव एक व्यावहारिक राजनीतिश । जम्होंने युद्ध एवं शान्तिकाल में राजा के सम्मुख उपस्थित होने वाली समस्याओं और उन के समाधान का विशद विवेचन किया है। उन्होंने समाजशास्त्र एवं रामशास्त्र दोनों का हो विवेचन नीतिवाक्यामृत में किया है। उन्होंने ऐसे सिद्धान्त्र निर्धारित किये हैं जिम से समाज एवं
१. कामन्दक नीतिसार १३, ३।। २. नहीं-१६, ३१, तथा ३१ । वार चक्षुनरेन्द्रस्तु रांपतेत तेन भयमा । अनेनासंपतच मावि पदत्यन्धः समेऽपि हि । चरेण प्रचरेवाज्ञः सूत्रवि गिलावरे । दूते संधानगारान्त परे चर्चा प्रतिष्टिता । 3. कामन्दक नीतिसार ८,२०-११ । ४, वही-१,३२।
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मीतिचापयामृत में राजनीति