Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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लिख कर उन्होंने फिर अपने को इन तीनों विद्यानों का पण्डित सूचित किया है। अपना ही नहीं अपने प्राचार्य हेमचन्द्र का भी इन तीन शास्त्रों का ही पाण्डित्य 'नाटपदर्पण-विवृति' के पन्त में उन्होंने इस प्रकार वर्णन किया है -
"शब्द-प्रमाण-साहित्य-छन्दो-लक्ष्म विधायिनाम् ।
श्रीहेमचन्द्रपादानां, प्रसादाय नमो नमः॥" 'नाटपदपंण विवृति' के प्रारम्भ में भी
. "प्राणाः कवित्वं विद्यानां, लावण्यमिव योषिताम् ।
विद्यवेदिनोऽप्यस्मै, ततो नित्यं कृतस्पृहाः॥" ना० ८० १-९ इस श्लोक से उन्होंने अपने को 'विद्यवेदिनः' कह कर अपना परिचय दिया है । 'सिवहेमशम्दानुशासन' के ऊपर 'न्यास' टीका लिख कर उन्होंने अपने व्याकरणशास्त्र के पाण्डित्य को चरितार्थ कर दिया है । अपने 'द्रव्यालंकार विवृति' ग्रन्थ द्वारा न्यायशास्त्र के पारङ्गतत्व को, पौर नाटयदर्पण एवं अनेक नाटकों की रचना द्वारा अपने साहित्यशास्त्र निष्णातत्व को चरितार्थ कर दिखाया। उनके ग्रन्थों के पढ़ने से स्पष्ट ही प्रतीत होता है कि वे इन सब शास्त्रों के प्रपूर्व विद्वान् थे। इसलिए उनका 'विद्य-वेदित्व' का अभियान यथार्थ ही था।
२. नाटघदर्पणकार रामचन्द्र ने अपने नाटकों में अपनी स्वातन्त्र्य-प्रियता पर बड़ा बल दिया है । उनकी काव्यरचना बिल्कुल स्वतन्त्र है । किमी अन्य कवि की कविता प्रादि का उन्होंने तनिक भी माश्रय नहीं लिया है । इस बात को प्रदर्शित करते हुए नलविलास की प्रस्तावना में लिखा है कि
"नटः [विमृश्य] भाव ! अयं कविः स्वयमुत्पादक उताहो परोपजीवकः ? सूत्रधारः-पत्रार्थे तेनैव कविना दत्तमुत्तरम्
जनः प्रज्ञाप्राप्तं पदमथ पदार्थ घटयतः पराध्वाध्वन्यानु नः कथयतु गिरां वत्त निरियम् । अमावास्यायामप्यविकलविकासीनि कुमुदा
न्ययं लोकश्चन्द्रव्यतिकरविकासीनि वदति ॥ निलविलास १-७] ऐसा प्रतीत होता है कि किसी मालोचक ने रामचन्द्र को गतानुगतिक अर्थात् पुरानी बातों का ही वर्णन एवं अनुगमन करने वाला कह दिया था। उसका विरोध करते हुए इस श्लोक में उन्होंने यह दिखलाया है कि 'हम तो सदा अपनी बुद्धि में प्रस्फुटित नवीन पदार्थों की रचना करते हैं, फिर भी यदि हमें लोग दूसरों का अनुगमन करने वाला कहते हैं तो कहने दो। ऐसा तो संसार में कहा ही जाता है । देखो न ! संसार कुमदों को चन्द्रमा के सम्पर्क से ही खिलने वाला कहता है । पर वे कुमुद तो अमावस्या के दिन चन्द्रमा के न होने पर भी खिलते है। इसलिए चोगों की बात विश्वास के योग्य नहीं है।
"मपि च शपथप्रत्येयपदपदार्थसम्बन्धेषु प्रीतिमावधानं अनमवलोक्य जातखेदेन तेनेदं चाभिहितम् -
स्पृहां लोकः काव्ये वहति जरठः कुण्ठिततमः वोभिर्वाच्येन प्रतिकुटिलेन स्पपुटिते।
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