Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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कवि रामचनका पात्मपरिषय
नाटप दर्पणकार रामचन्द्र का यह परिचय हमने अन्य लोगों के ग्रन्थों में वरिणत सामग्री के प्राधार पर दिया था। अब मागे उनकी स्वयं दी हुई सामग्री के आधार पर उनका कुछ परिचय प्रस्तुत किया जाता है। नाटघरचना के नियमों के अनुसार नाटक की प्रस्तावना में सूत्रधार के मुख से प्रत्येक नाटककार अपने सम्बन्ध में कुछ परिचय देता है :
रङ्गप्रसाद मधुरः श्लोकः काम्यार्थसूचकैः ।
स्पकस्य कवेराख्यां गोत्राद्यपि स कीर्तयेत् ।। साहित्यदर्पण ६-२८ । इस नियम के अनुसार प्रत्येक नाटक के प्रारम्भ में कवि रामचन्द्र ने अपना परिचय दिया है, परन्तु परिचय में उन्होंने अपने गोत्रस्थान प्रादि का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया है। अपने सभी नाटकों में उन्होंने केवल भाचार्य हेमचन्द्र सूरि के शिष्य-रूप में ही अपना परिचय कराया है । इस लिए उनके ठीक जन्म स्थान, पितृनाम और कुल-गोत्रादि का कोई परिचय हमको नहीं मिलता है। फिर भी उनके अपने व्यक्तित्व के परिचय कराने के लिए उनकी स्वलिखित पर्याप्त सामग्री मिलती है। अपने विषय में सबसे लम्बा परिचय उन्होंने कदाचित् 'रघुविलास' की प्रस्तावना में दिया है । वह परिचय निम्न प्रकार है
___ "मारिष ! सिद्धहेमचन्द्राभिषानशब्दानुशासनविधानवेधसः श्रीमदाचार्य हेमचन्द्रस्य शिष्यं रामचन्द्रमभिजानासि ? चन्द्र०-- [साक्षेपम्
पञ्चप्रबन्ध मिषपञ्जमुखानकेन विद्वन्मनःसदसि नृत्यति यस्य कीतिः । विद्यात्रयीचणमचुम्बितकाव्यतन्द्र
कस्तं न वेद सुकृती किल रामचन्द्रम् ? किन्तु द्रव्यालङ्कारनामा प्रबन्धोऽनभिनेयत्वेन तावदास्ताम् । अपरेषां राघवाभ्युदय-यादवाभ्युदयनलविलास-रघुविलासानां चतुर्णा रमणीयतम-सन्द्ध्यनिवेशानां विशदप्रकृतीनां पुनर्मध्ये कुत्र प्रजानामनुरागः ?
[रघुविलास-प्रस्तावनायाम्] यह उद्धरण 'रघुविलास' को प्रस्तावना से लिया गया है । इसमें कवि रामचन्द्र ने अपने पांच प्रन्थों का उल्लेख किया है। इनमें से प्रथम 'द्रव्यालङ्कार' ग्रन्थ न्यायशास्त्र से सम्बन्ध रखने वाला ग्रन्थ है और शेष चारों उनके प्रसिद्ध नाटक है । पाँच ग्रन्थों के उल्लेख से यह प्रतीत होता है कि 'रघुविलास' की रचनाकाल तक वे इसको मिला कर पांच ग्रन्थों की रचना कर चुके थे। मोर उनके कारण उनकी पर्याप्त ख्याति हो गई थी। इस परिषय में उन्होंने अपने को 'विद्यात्रयी चरणम्' कहा है। साधारण 'त्रयोविद्या' पद से वेदविद्या का ग्रहण होता है । किन्तु रामचन्द्र जैन विद्वान थे इसलिए वेद विद्या से उनका कोई सम्बन्ध नहीं था। उन्होंने जो 'विधात्रयी' का प्रयोग किया है उससे न्याय, व्याकरण तथा साहित्य विद्या का ग्रहण होता है । रामचन्द्र का इन तीनों शास्त्रों के ऊपर पूर्ण अधिकार था, इसी लिए उन्होंने यहां अपने को 'विद्यात्रयीचणम्' तीनों विद्याओं में निपुण कह कर अपना परिचय दिया है । 'नाटयदर्पण-विवृति' के अन्त में
• "शमलक्ष्म-प्रमालक्ष्म-काव्यलक्ष्म-कृतश्रमः । वाग्विलासस्त्रिमार्गों नौ, प्रवाह इव जाह्न.जः ॥"
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