________________
जन्म-पूर्व परिवार एवं परिस्थितियाँ ५
कोई स्थान नहीं रहा । यह जसमित्र था जो निमित्तज्ञ था । अपने इस मित्र से बहुत दिनो पश्चात् भेट कर ऋपभदत्त को बडी प्रसन्नता हुई। धारिणीदेवी को भी हर्प हुआ । अभिवादनो के आदान-प्रदान के पश्चात् कुशल-क्षेम की औपचारिकता हुई । हाँ, औपचारिकता ही थी, क्योकि धारिणीदेवी और ऋषभदत्त की मानसिक खिन्नता के तट को वह प्रसन्नता की लहरी क्षणिक स्पर्श कर लौट गयी थी और इस खिन्नता से जसमित्र भी अविलम्ब ही परिचित हो गया था। धारिणीदेवी की इस गहन उदासी ने जसमित्र को उद्विग्न बना दिया। रथ-चक्रो की भाँति कुछ क्षण सारा वातावरण गतिहीन रह गया-शब्द-शून्य और भावहीन । अन्तत मित्र ने मौन भग करते हुए ऋषभदत्त से प्रश्न किया कि श्रेष्ठि मित्र ! आज कौन सी विशेष बात हो गयी कि भाभी इतनी गम्भीर और उदास है। इनके मानस मे उठ रहे चिन्ताज्वार की स्पष्ट झलक मुखमण्डल पर दिखाई दे रही है। आर्य सुधर्मास्वामी के दर्शनार्थ जाते समय तो एक अपूर्व कान्ति, उत्साह और हर्ष की झलक होनी चाहिए । क्या बात है, मित्र | कारण ज्ञात हो जाने पर कवाचित् मै किसी रूप में सहायक हो सकूँ। इस प्रश्न पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। दोनो मौन ही बैठे रहे । जसमित्र ने श्रेप्ठि को पुन. सम्बोधित कर कहा कि आखिर बात क्या है ? ऋषभदत्त ने क्षीण सी मुस्कान के साथ छोटा सा उत्तर दे दिया कि मित्र । तुम स्वय ही अपनी भाभी से पूछ देखो न ! मेरी मध्यस्थता क्या आवश्यक ही है ? अब तो जसमित्र भी गम्भीर हो गया । वह धारिणी देवी की ओर उन्मुख हुआ।