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मारवाड़ का इतिहास के तालावों और कूँओं में मारे हुए जानवरों की लाशें और सिंगीमोहरा डलवा दिया । जब मारवाड़ के सेना-नायकों को यह बात मालूम हुई, तब उन्होंने शीघ्र ही हजारडेढ़ हजार पखालें पानी से भरवा कर ऊँटों पर लदवालीं। मार्ग में जहाँ का पानी पीने लायक होता वहाँ के जलाशयों में से मृत पशुओं की हड्डियाँ आदि निकलवा कर पखालें भरवाली जातीं और जहाँ का जल विषैला पाया जाता वहाँ उन पखालों के पानी से काम लिया जाता । इस प्रकार बीकानेर-राज्य के प्रान्तों को पद-दलित करती हुई यह सेना जिस समय गजनेर के पास पहुँची, उस समय वहाँ वालों को लाचार हो संधि की प्रार्थना करनी पड़ी और उसके स्वीकृत हो जाने पर फलोदी का प्रान्त, जो धौंकलसिंह के पक्ष वालों ने अपनी सहायता करने की एवज में उन्हें दे दिया था, वापस मारवाड़ वालों को सौंपना पड़ा । इसीके साथ तीन लाख साठ हजार रुपये फौज-खर्च के देने का वादा मी करना पड़ा। ___ इसी बीच अमीरखाँ नागोर से जोधपुर आया । महाराज ने उसकी बड़ी खातिर की और कुल मिलाकर परबतसर, मारोठ, डीडवाना, सांभर, नांवा और कोलिया आदि के परगने उसके खर्च के लिये नियत किए।
वि० सं० १८६६ के प्रथम आषाढ़ ( ई० स० १८०९ के जून ) में अमीरखाँ ने जयपुर-राज्य में पहुँच फिर उपद्रव शुरू किया। यह देख जयपुर-महाराज जगतसिंहजी ने महाराज से मेल करने के लिये दूत भेजे । अन्त में गीगोली की लूट में मिला सामान लौटा ने और फौज-खर्च के नाम से कुछ रुपये अमीरखाँ को देने पर महाराज ने उनसे संघि करैली ।
१. 'तवारीख राज श्री बीकानेर' में तीन लाख रुपया देना लिखा है । ( देखो पृ. २०३ )। २. इसमें से कुछ रुपया तो उसी समय दे दिया गया था और कुछ के लिये ज़मानत
दिलवाकर, वि. स. १८६५ की मंगसिर बदि ५ (ई० स० १८०८ की ८ नवम्बर) को, बीकानेर-नरेश सूरत सिंहजी ने एक रुक्का लिख दिया था। साथ ही गींगोली के युद्ध
मे हाथ लगा मारवाड़ वालों का सामान भी इस अवसर पर उन्हें वापस देना पड़ा था। ३. वैसे तो वि० सं० १८६७ (ई० सं० १८१० ) से ही मारवाड़ में अकाल था। परन्तु
वि० सं० १८६६ में उसकी मीषणता और भी बढ़ गई और नाज रुपये का ३ सेर होगया। इससे बहुत से प्रादमी मर गए और बहुत से देश छोड़ कर मालवे की तरफ बले गए।
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