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महाराजा मानसिंहजी इकट्ठे होकर अपनी-अपनी चढ़ी तनख्वाह के लिये हुज्जत कर रहे थे । कुछ देर बाद अमीरखाँ का नायब, इस झगड़े को मिटाने के लिये स्वयं अमीरखाँ को बुलालाने का बहाना कर, शामियाने से बाहर चला गया और थोड़ी देर बाद ही अमीरखाँ का साला भी उठ कर जाने लगा । यह देख सरदारों को सन्देह हुआ। इससे उन्होंने बात-चीत के बहाने उसे हाथ पकड़ कर वहीं बिठा लिया। इतने में पूर्व निश्चित संकेत के होते ही एकाएक शामियाने की रस्सियाँ काट दी गई और चारों तरफ़ की तोपें गोले उगलने लगीं । शामियाने के भीतर बैठे हुए शत्रु तो इस प्रकार मारडाले गएं और बाहर वालों को नवाब के सिपाहियों ने कत्ल कर डाला । फिर भी कुछ थोड़े से आदमी बचकर भाग निकले और जब उन्होंने नागोर पहुँच यह हाल सुनाया, तब हरसोलाव-ठाकुर जालिमसिंह, खींवसर-ठाकुर प्रतापसिंह, भाटी छत्रसाल और तुवर मदनसिंह किला छोड़ तत्काल बीकानेर की तरफ़ चल दिएं । इससे नागोर की सारी सेना भी बिखर गई और जिसको जिधर मौका मिला उसने उधर भाग कर प्राण-रक्षा की । इसके बाद ( चैत्र सुदि ४३१ मार्च को) अमीरखा ने नागोर पर अधिकार कर उस प्रान्त के जागीरदारों से दण्ड के रुपये वसूल करने शुरू किए।
जिन-जिन सरदारों आदि ने अपने अपराधों की माफ़ी मांगली, उन-उन को महाराज ने क्षमाकर गृह-कलह को बहुत कुछ शान्त कर दिया। इसके बाद महाराज की आज्ञा से सिंघी इन्द्रराज और सरदारों ने मिलकर बीकानेर पर चढ़ाई की । ऊदासर के पास युद्ध होने पर बीकानेर की सेना को हारकर भागना पड़ा । परन्तु लौटते हुए उसने मार्ग
१. यह घटना चैत्र सुदि ३ (३० मार्च) को हुई थी। इसके बाद ही नवाब ने मारे गए
चारों सरदारों के सिर महाराज के पास भेज दिए । इसी से जोधपुर में उन सब का दाह
कर्म किया गया। २. किसी किसी ख्यात में धौंकलसिंह का भी इनके साथ भागकर बीकानेर जाना लिखा है।
ठाकुर सवाईसिंह की मृत्यु का समाचार मिलते ही उसका पुत्र सालमसिंह पौकरन की गद्दी पर बैठा और इसके बाद सिपाही इकडे कर फलोदी के आस-पास के गांवों को उजाड़ने लगा। परन्तु महाराज की सेना के पहुँच जाने पर उसे पौकरन लौट जाना पड़ा। इसी समय उसने हरियाडाणा के ठाकुर बुधसिंह को महामन्दिर में प्रायस देवनाथ के पास भेज उससे सहायता की प्रार्थना की। इस पर उस (नाथजी) ने महाराज से कहकर मजल और दूनाड़ा उसे फिर से दिलवा दिया। इसकी एवज़ में उस ( सालमसिंह ) ने भी कायदे के माफ़िक रेख और बाब नामक कर राज्य में देते रहने
और चाकरी में घोड़े रखने का वादा किया। इस अवसर पर उसके भाई-बन्धुओं की जब्त की हुई जागीरें भी उन्हें लौटा दी गई।
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