________________
मारवाड़ का इतिहास (१९ अप्रेल) को भीमनाथ के द्वारा, महाराज की इच्छा न होते हुए मी, उनसे राजकुमार छत्रसिंहजी को युवराज-पद दिलवा दिया । राजकुमार छत्रसिंहजी का जन्म वि० सं० १८५७ की फागुन सुदि । (ई० स० १८०१ की २२ फरवरी) को दुआ था और इस समय उनकी अवस्था करीब १७ वर्ष की थी । इसलिये राज्य-कार्य की देख-भाल मुहता अखैचंद करने लगा । प्रधान का पद फिर से पौकरन-ठाकुर सालमसिंह को दिया गया । कुछ ही दिनों में मुंहलगे लोगों के कहने से महाराज-कुमार ने नाथ संप्रदाय को त्याग कर वैष्णव-संप्रदाय की दीक्षा ग्रहण करली ।
इसके बाद पिंडारी युद्ध के समय वि० सं० १८७४ की पौष वदि ३० (ई० स० १८१८ की ६ जनवरी) को गवर्नर-जनरल मार्किस ऑफ़ हेस्टिंग्ज के समय "ईस्ट इण्डिया कम्पनी" और जोधपुर-राज्य के बीच यह संधि हुई:१. इंगलिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और महाराजा मानसिंहजी तथा उनके उत्तरा
धिकारियों के बीच पूरी और पक्की मित्रता रहेगी। दोनों तरफ़वाले एक
दूसरे के शत्रु और मित्र को अपना शत्रु और मित्र समझेंगे । २. ब्रिटिश गवर्नमैन्ट मारवाड़ राज्य की रक्षा का जिम्मा लेती है । ३. महाराजा मानसिंहजी, उनके वंशज और उत्तराधिकारी ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट के
अधिकार-युक्त सहयोग से काम करेंगे । वे लोग किसी अन्य राजा या राज्य
से किसी प्रकार का (राजनैतिक ) सम्बन्ध नहीं रक्खेंगे। ४. महाराज, उनके वंशज और उत्तराधिकारी ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट को सूचित किए
विना या उसकी आज्ञा के विना किसी राजा या राज्य से किसी प्रकार की (राजनैतिक) बात-चीत नहीं करेंगे । परन्तु उनकी साधारण लिखा-पढ़ी अपने मित्रों और संबंधियों के साथ जारी रहेगी। ने पंचोनी गोपालदास को उस पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी। उसके वहाँ पहुँचने पर एक बार तो वहाँ वालों ने उसका सामना किया, परन्तु अन्त में राजकुमार की अधीनता
स्वीकार करली। १. ख्यातों से यह भी प्रकट होता है कि षड्यंत्रकारियों ने कई वार महाराजा मानसिंहजी को
मार डालने तक की चेष्टाएं की। परन्तु इनकी सावधानी के कारण वे सफल मनोरथ
न हो सके। २. ए कलेक्सन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐंड सनद्स, भा० ३, पृ० १२८-१२६ ।
४२०
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com