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समाधान- यहां मिथ्याभाव विशिष्ट ज्ञान को अज्ञान भानकर उम अज्ञान की प्रधानता की विवक्षावश उपरोक्त कथन किया गया है। वास्तव में रागद्वेषादि विकारों सहित अज्ञान बंध का कारण हैं । यदि अल्प भी ज्ञान वीतरागता संपन्न हो, तो वह कर्मराशि को विनिष्ट करने में सम्पति आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
मूलाधार में कुन्दकुन्द महर्षि ने कहा है
धीरो वरपरी थोषिय मिक्खिदुग सिज्झदि हु ।
सिज्यदि वेगविदीयो पढिदूश सव्वसत्थाहं ॥ ३-३ ॥
श्री द्रपभु विकराला
खामगांव जि. बुलडाणा
वीर ( सर्व उपसर्ग - सद्दन - समर्थः ) तथा विषयों से पूर्ण विरक्त यति अल्प भी (सामायिकादि स्वरूप प्रमाण) ज्ञान को धारणकर कर्मों का अय करता है; वैराग्यभाव शून्य व्यक्ति सर्व शास्त्रों को पढ़कर... सोच नहीं पाया है ।
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आचार्य की यह मंगलवाणी सार- पूर्ण है:
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जो
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सिक्खिद जिद्द बहुसुदं जो चरिच- संपूया |
चरितहोणो किं तस्स सुदेश चहुए || ३-६ ॥
जो चारित्र पूर्ण व्यक्ति है, वह अल्प ज्ञान युक्त होते हुए भी दशपूत्र के पाठी बहुश्रुतन को पराजित करता है । जो चारित्रहीन हैं, उसके बहुश्रुत होने से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ?
टीकाकार वसुनंदि सिद्धान्तचक्रवर्ती ने लिखा है, स्तोके शिक्षिते पंच-नमस्कारमात्रेऽपि परिज्ञाते तस्य स्मरणे सति जयति बहुश्रुन दशपूर्वधरमपि करोत्यवः"--- अल्पज्ञानी होने का अभिप्राय है, कि पंच नमस्कार मात्र का ज्ञान तथा स्मरण संयुक्त व्यक्ति यदि चारित्र - संपन्न है. तो वह दशपूर्वधारी महान ज्ञानी से आगे जाता है ।
सम्यकचारि का महत्व - प्रवचन खार में यह महत्वपूर्ण कथन आया है -
यहियागमेण सिञ्झदि सद्दद्दणं यदि व अति श्रत्थे मद्दहमाणो अस्थे श्रसंजदो वा खिव्वादि
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॥ २३७॥
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यदि स्वार्थ की श्रद्धा नहीं है. वो आगम के ज्ञान मात्र से सिद्धि नहीं प्राप्त होती है। तत्र की श्रद्धा भी हो गई, किन्तु यदि वह व्यक्ति