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गुण स्थान सस्त्र स्थान विशेष विवरण प्रथम
तीन
२८-२५-२६ द्वितीय वृतोय
२८-२४ मार्यसुर्थीक :- आचार्य श्रीपराविधिसागर जी महारा४, २३, २२, २१ पंचम
पांच
पूर्ववन् पष्टम
पांच
पूर्ववत सप्तम
पांच
पूर्ववत् अष्टम (उपशम श्रेणी)| तीन
२८, २४, २१ अनम (क्षपक श्रेणी) नयम (पशम श्रेणी) | तीन
२८, २४, २१ नवम ( क्षपक श्रेणी) नौ दशम ( उ० श्रे०) तीन
-४-२१ दशम ( ज्ञ० अंक)पक
१ सूक्ष्मलाभ उपशांत भोझ चीन
२८-२४-२१
मोहनीय के बंध स्थान दश कहे गए हैं । उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है। मिथ्यात्व गुणस्थान में मिथ्यात्व, १६ कषाय, एक बेद, भय-जुगुप्सा तथा हास्यरति अथवा अरतिशोक रुप युगल मिलकर २२ प्रकृतिक बंध स्थान हैं।
सासादन में मिथ्यात्व रहित २१ प्रकृति का बंध स्थान है। मिश्र गुणस्थान तथा अविरत सम्यक्त्वी २१ - ४ = अनंतानुबंधी रहित १७ प्रकृतिक बंध स्थान है । संयतासंयत के अप्रत्याख्यानावरण रहित १७-४१३ प्रकृतिक स्थान है । संयत के प्रत्याख्यानावरण रहित १३ - ४ = १ प्रकृतिक स्थान है । यही क्रम अप्रमत्त संप्रत तथा अपूर्वकरण गुणस्थानों में है। अनिवृत्तिकरण में भय-जुगुप्मा तथा हास्य रति रहित पांच प्रकृतिक स्थान है। पुरुषवेद का बंध रुकने पर वेद रहित अवस्था में संज्वलन ४ का बंध होगा । क्रोध रहित के ३ प्रकृति का, मानरहित के दो प्रकृतिका, माया रहित के केवल लोभ के बंध रुप एक प्रकृतिक