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प्रदेशाय प्रथम समय में उपशम को प्राप्त कराया जाता है, वह सबसे कम है । द्वितीय समय में जो उपशान्त किया जाता है, असंख्यातगुणा है । इस क्रम से जाकर अंतिम समय में कर्मप्रदेशाग्र ' वह के असंख्यात बहुभाग उपशांत किये जाते हैं।
"एवं सव्वकम्माणं" ( १८७७ ) इस प्रकार सर्व कर्मों का अर्थात् नपुंसकवेदादि का क्रम जानना चाहिए ।
उदयावली तथा बंधावली को छोड़कर शेष सर्व स्थितियां समय समय अर्थात् प्रति समय उपशांत की जाती हैं । उदयावली में प्रविष्ट स्थितियों की उपशामना नहीं होती । बंधावली को प्रतिक्रांत स्थितियों की उपशामनादिकरणों की प्रायोग्यता है ।
"श्रणुभागाणं सवाणि फडयाणि सव्वाश्रो वग्गणाम्रो उवसानिज्जति" अनुभागों से सवं आतंक सुटणारी उपशास्त की जाती हैं । नपुंसकवेद का उपशमन करने वाले प्रथम समयवर्ती जीव के जो स्थितियां बंधती हैं, वे सबसे कम हैं। जो स्थितियां संक्रान्त की जाती हैं, वे प्रसंख्यातगुणी हैं, जो स्थितियां उदीरणा को प्राप्त कराई जाती है, वे उतनी ही हैं। उदीर्ण स्थितिया विशेवाधिक है। 'जट्टिदिउदयोदीरणा संतकम्मं च विसेसाहियो' ( पृ० १८८० ) यत्स्थितिक उदय उदीरणा और सत्कर्म विशेषाधिक हैं । "अणुभागेण बंधों थोवो " -- अनुभाग की अपेक्षा बन्ध सर्व स्तोक है | उससे उदय और उदोरणा अनंतगुणी हैं। उससे संक्रमण और सत्कर्म अनंतगुणित हैं।
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"किट्टीओ वेदतस्स बंघो पत्थि " कृष्टियों को वेदन करने वाले जीव के बंध नहीं होता है । कृष्टियों का वेदक सूक्ष्मसांपराय संयत होता है । मोहनीय का बंध अनिवृत्तिकरण गुणस्थान से श्रागे नहीं होता है ।
उदय और उदीरणा स्तोक हैं, क्योंकि कृष्टियों की अनंतगुणहानि होकर उदय और उदीरणा स्वरूप से परिणमन