Book Title: Kashaypahud Sutra
Author(s): Gundharacharya, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 295
________________ ( २१६ ) एदेण अंतरेण दु अपच्छिमाए दु पच्छिमे समए । भवसमयसेसगाणि दुणियमातम्हि उत्तरपदाणि ॥२०३।। इस अनंतर प्ररूपित आवलोके पावलो के असंख्यातवें भाग प्रमाण उत्कृष्ट अन्तर से उपलब्ध होने वाली अपश्चिम (अंतिम) असामान्य स्थिति के समय में भयबध्द शेष तत्रा समयबध्द शेष नियम से पाये जाते हैं और उसमें अर्थात् क्षपक की अष्ट वर्ष प्रमाण स्थिति के भीतर उत्तरपद होते हैं। किट्टीकदम्मि कम्मे ट्ठिदि-अणुभागेसु केसु सेप्साणि । कम्माणि पुवबद्धाणि बज्मभाणादिण्णाणि ॥२०४॥ " मोह के निरवशेष अनुभाग सत्कर्म के कृष्टिकरण करने पर मार्गशीष वेदनअनाथमा शुगमनामधा हीसले पूर्वबध्द किन स्थितियों और अनुभागों में शेष रूप से पाए जाते हैं ? बध्यमान और उदीर्ण कर्म किन किन स्थितियों और अनुभागों में पाए जाते हैं ? किट्टीकदम्मि कम्मे णामागोदारिप वेदरणीयं च । वस्सेसु असंखेज्जेसु सेसगा होति संखेज्जा ॥२०॥ मोह के कृष्टिकरण होने पर नाम, गोत्र और वेदनीय असंख्यात वर्ष प्रमाण स्थिति सत्वों में पाए जाते हैं। शेष चार धातिया संख्यात वर्ष प्रमाण सत्व युक्त होते हैं । - विशेष--कृष्टिकरण के निष्पन्न होने पर प्रथम समय में कृष्टियों के वेदक के नाम, गोत्र और वेदनीय के स्थिति सत्कर्म असंख्यात वर्ष हैं । मोहनीय का स्थिति सत्व आठ वर्ष है। शेष तीन धातिया कर्मों का स्थिति सत्व संख्यात हजार वर्ष है । "मोहणीयस्स हिदिसंत-कम्ममट्ठबस्साणि । तिण्हं धादि-कम्माण द्विदिसंतकम्मं संखेनाणि वस्ससहस्साणि ।" ( २१६३ )

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