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( २२६ ) औझुदि जे अस से कालकिणतिपदि । ओकड्डिदे च पुत्वं सरिसमसरिसे पवेसेदि ॥ २२१ ॥
जिन कर्माशों का अपकर्षण करता है क्या अनंतर काल में उनको उदीरणा में प्रवेश करता है ? पूर्व में अपकर्षण किए गए कर्माशों को अनंतर समय में उदीरणा करता हुआ क्या सदृश को अथवा असदृश को प्रविष्ट करता है ?
विशेष—जितने अनुभागों को एक वर्गणा के पसे उदोणं करता है, उन सबको 'सदृश' कहा है । जिन अनुभागों को अनेक वर्गणाओं के रुपमें उदोर्ण करता है, उन्हें असदृश कहते हैं । "जदि जे अणुभागे उदीरेदि एकिस्से वग्गणाए सवे ते सरिसा णाम अध जे उदीरेदि अणेगासु वग्गणासु ते प्रसरिसा णाम" ( २२४१ )
अनंतर समय में जिन अनुभागों को उदय में प्रविष्ट करता है, उन्हें असदृश ही प्रविष्ट करता है, “एदोए सण्णाए से काले जे पवसेदि ते असरिसे पवेसेदि ।" । उक्कड्डुदि जे असे से काले किण्णु ते पवेसेदि । उक्कड्डिदे च पुवां सरिसमसरिसे पवेसेदि ॥ २२२॥ । जिन कर्माशों का उत्कर्षण करता है, क्या अनंतरकाल में उनको उदीरणा में प्रवेश करता ? पूर्व में उत्कर्षण किए गए कर्माश को अनंतर समय में उदोरणा करता हुप्रा क्या सदृश रूपसे या असदृश रुप से प्रविष्ट करता है ? बंधो व संकमो वा तह उदयो वा पदेस-अणुभागे । बहुगत्ते थोबत्ते जहेव पुब्दां तहेवेगिह ॥ ९५३ ॥ | कृष्टिकारक के प्रदेश तथा अनुभाग संबंधी बंध, संक्रमण अथवा उदय के बहुत्व तथा स्तोक की अपेक्षा जिस प्रकार