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( २२८ ) - विवक्षित समय में जिन स्थिति अनुभाग युक्त कृष्टियों में उदीरणा, संक्रमणादि किए हैं, क्या अनंतर समय में उन्हीं कृष्टियों में उदीरा संक्रमणादि करता है या अन्य कृष्टियों में करता है ?
विशेष - इस गाथा का स्पष्टीकरण दस भाष्य गाथाओं द्वारा किया गया है।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज बंधो व संकमो वा णियमा पव्वेसु दिदिविसेसेसु । सब्बेसु चाणुभागेसु संकमो माझिमो उदओ ॥२६॥
___विवक्षित कृष्टि का बंध वा संक्रम क्या सर्व स्थिति विशेष में होता है ? विवक्षित कृष्टि का जिस कृष्टि में संक्रमण किया जाता है, उसके सर्व अनुभागों में संक्रमण होता है किन्तु उदय मध्यम कृष्टि में जानना चाहिये।
संकामेदि उदीरेदि चावि सम्वेहि द्विदिविसेसेहिं । किट्टीए अणुभागे वेदेतो मझिमो णियमा ॥२२०॥
क्या क्षपक सर्व स्थिति विशेषों के द्वारा संक्रमण तथा उदी. रणा करता है ? कृष्टि के अनुभागों को वेदन करता हुआ वह नियम से मध्यवर्ती अनुभागों का वेदन करता है ।
' विशेष -उदयावली में प्रविष्ट स्थिति को छोड़कर शेप सर्व स्थितियां संक्रमण को तथा उदो रणा को प्राप्त होती हैं । जिस कृष्टि का बेदन करता है, उसकी मध्यम कृष्टियों की उदो रणा करता है, “प्रावलियपनिट्ठ मोत ण सेसाप्रो सब्बामो ट्ठिदोनो संक्रामेदि उदीरेदि च । जं किट्टि वेददि तिस्से मज्झिम किट्ठीप्रो उदोरेदि" ( २२४०)