Book Title: Kashaypahud Sutra
Author(s): Gundharacharya, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 306
________________ ( २३० ) पूर्व निर्णय किया गया है, उसी प्रकार यहां भो निर्णय करना चाहिये। जो कम्मंसो पविसदि पोगसा तेण णियमासा अहिओ। पविसदि ठिदिक्खएण दु गुणेण गणणादियंतेण ॥२४॥ । जो कर्माश प्रयोग के द्वारा उदयावलीमें प्रविष्ट किया जाता जाता है, उसकी अपेक्षा स्थिति क्षय से जो कर्माश उदयावली में प्रविष्ट होता है, वह नियमसे असंख्यातगुणित रूपसे अधिक होता है। मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज आवलियं च पविट्ठ पोगसा णियमसाच उदयादी। उदयादिपदेसम्ग गुणेण गणणादियंतेण ॥२२५।। / कृष्टिवेदक क्षपक के प्रयोग द्वारा उदयाक्ली में प्रविष्ट प्रदेशाग्र नियमसे उदयसे लगाकर आगे प्रावली पर्यन्त असंख्यात गुणित श्रेणी रूप में पाया जाता है। / विशेष—क्षपक उदयावली में प्रविष्ट जो प्रदेशास पाया जाता है, वह उदयकाल के प्रथम समय में स्तोक है। द्वितीय स्थिति में असंख्यात गुणा है। इस प्रकार संपूर्ण ग्रावली के अंतिम समय पर्यन्त असंख्यात गुण श्रेणी रुप से वृदिगत प्रदेशाग्र पाए जाते हैं । “जमावलियपविष्ट पदेसग्गं तमुदा थोयं । विदिदिदी असंखेज्जगुणं । एवमसंखेज्ज-गुणाए सेढोए जाव सविस्से पावलियाए"। (२२४७) . जा वग्गणा उदीरेदि अयंता तासु संकदि एक्का। पुव्वविट्ठा णियमा एक्किस्से होति च अशंता ॥२२६॥ । जिन अनंत वर्गणाओं को उदोर्ण करता है, उनमें एक अनुदोर्यमाण कृष्टि संक्रमण करती है। जो उदयावली में प्रत्रिय अनंत प्रवेद्यमान वर्गणाएं ( कृष्टियां ) हैं, वे एक एक वेद्यमान मध्यम कष्टि के स्वरुप से नियमतः परिणत होती हैं ।

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