Book Title: Kashaypahud Sutra
Author(s): Gundharacharya, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 327
________________ ( 251 ) मुक्तामुस्कैक-रूपो यः कर्मभिः संविदादिना / प्रक्षयं परमात्मानं ज्ञानमूर्ति नमामि तम् / / शुद्धद्रव्याथिक दृष्टि से जिस आत्मा को कर्मबंधन काल में भी शुद्ध कहतोले दाब-वहायसम्मा पनिटासीर स्वामोहसिल बुद्ध हो गई। चूणिसूत्रकार यतिवृषभ स्वामी कहते हैं :--- "सेलेमि प्रद्धाए झीणाए सब्बकम्मविष्पमुक्को एकसमएण सिद्धि गच्छइ"--शैलेशता का काल व्यतीत होने सर्व कर्म से विप्रमुक्त हो वे प्रभु एक समय में स्वात्मोपलब्धि रुप सिद्धि को प्राप्त होते हैं। तिहुवण-णाहे णमंसामित्रिभुवन के नाथ सिद्ध परमात्मा को हमारा नमस्कार है।

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