Book Title: Kashaypahud Sutra
Author(s): Gundharacharya, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 313
________________ ( २३७ ). | शंका- इस प्रकार महान आचार्यों के कथन में विरोध होने से प्राचार्य कथित सत्कर्म और कषायप्राभतों को सूत्रपना कैसे प्राप्त होगा ? .. समाधान-जिनकी गणधरदेव ने ग्रन्थ रूप में रचना की, ऐसे बारह अंग प्राचार्य परंपरा से निरंतर चले पा रहे हैं, किन्तु काल के प्रभाव से उत्तरोत्तर बुद्धि के क्षीण होने पर और उन अंगों को धारण करने वाले योग्य पात्र के प्रभाव में वे उत्तरोत्तर क्षीण होते जा रहे हैं । इसलिए जिन आचार्यों ने आगे श्रेष्ठ बुद्धि वाले पुरुषोंमादबाव वानप्रवासासीका हासज जिन्होंने गुरुपरंपरा से श्रुतार्थ ग्रहण किया था, उन प्राचार्यों ने तीर्थविच्छेद के भय से उस समय शेष बचे अंग संबंधी अथं को पोथियों में लिपिबद्ध किया, अतः उनमें असूत्रपना नहीं आ सकता । (१) । शंका-उन दोनों प्रकार के वचनों में किस वचन को सत्य माना जाय? . उत्तर--(२) इस बात को केवली या श्रुतकेवली ही जान सकते हैं, दूसरा कोई नहीं जान सकता । इसका निर्णय इस समय संभव नहीं है, अतः पापभीरु वर्तमान के प्राचार्यों को दोनों का संग्रह करना चाहिए । ऐमा न करने पर पाप-भीरुता का विनाश हो जायगा। १ तित्थयर कहियत्थाणं गणहरदेवकयगंथ-रयणाणं बारहगाणं प्राइरिय-परंपराए णिरंत रमागयाणं जुगसहावेण बुद्धोसु प्रोहट्टतोसु भायणा-भावेण पुणो अोहट्टिय प्रागवाणं पुणो सुबुद्धीणं खयं दळूण तित्थवोच्छेदभयेण वज्जभीरुहि गहिदत्थेहि आइरिएहि पोत्थ एसु चडावियाणं असुत्तत्तं ण विरोहादो (ध.टी. भा. १,पृ २२१) २ दोहं वयणाणं मउझे कं वयणं सच्चमिदि चे सुदकेवली केवली वा जाणादि । ण अण्णो तहा णिण्णयाभावादो । बट्टमाणकालाइरिएहि वज्जभीरुहि दोण्हं पि संगहो कायक्वो, अण्णहा वज्जभीरत्त-विणासादो त्ति ( पृ. २२२ )

Loading...

Page Navigation
1 ... 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327