Book Title: Kashaypahud Sutra
Author(s): Gundharacharya, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 323
________________ ( २४७ ) कर्मों की स्थिति समान नहीं पाई जाती है। इस कारण सभी केबली समुद्धामाबे हैं अचिव प्रचाशनमा लोकपूरण समुद्रघात करने वाले केवलियों की संख्या नियमसे बीस कही है, उनके मतानुसार कोई समुद्घात करते हैं, कोई नहीं करते हैं। शंका--कौन केवली समुद्रघात नहीं करते हैं ? । समाधान--जिनकी संसार-व्यक्ति (संसार में रहने का काल) वेदनीय, नाम तथा गोत्र इन तीन कर्मों की स्थिति के समान है, वे समुद्घात नहीं करते हैं । शेष केवली करते हैं । समुद्धात क्रिया के पश्चात् अंतर्मुहूर्त पर्यन्त स्थिति कांडक, अनुभागकांडक का उत्कीरणकाल प्रबर्तमान रहता है। केवली के स्वस्थान समवस्थित हो जाने पर वे अन्तर्मुहुर्तपर्यन्त योगनिरोध की तैयारी करते हैं। इस समय अनेक स्थिति कांडक तथा अनुभागकांडक घात व्यतीत होते हैं। अंतर्मुहूतं काल के पश्चात् वे सयोगी जिन बादर काययोग के द्वारा बादर मनोयोग का निरोध करते हैं। तदनतर अंतर्मुहूर्त के बाद बादर काययोग से बादर वचन योग का निरोध करते हैं। पुन: अंतर्मुहूर्त के बाद बादर काययोगसे बादर उच्छ्वास-निःश्वास का निरोध करते हैं । फिर अंतर्मुहूर्त के बाद बादर काययोगसे उस बादरकाययोग का निरोध करते हैं, "तदो अंतोमुहत्तण बादरकायजोगेण तमेव बादरकायजोगं णिरु भइ" ( २२८३ ) फिर अंतर्मुहूर्त के बाद सूक्ष्मकाय योग से सूक्ष्म मनोयोग का निरोध करते हैं। फिर अंतमुहूर्त के पश्चात् सूक्ष्म काययोग से सूक्ष्म वचन योग का निरोध करते हैं । फिर अंतर्मुहूर्त के बाद सूक्ष्म काययोग से सूक्ष्म उच्छ्वास-निःश्वास का निरोध करते हैं । "तदो अंतोमुह गंतूण सुहमकायजोगेण सुहमकायजोगं निरुभमाणो इमाणि करणाणि करेदि"--तदनंतर अंतमुहूर्त काल के बाद बादर

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