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{ २२५ ) चाहिए । सर्वधाती को अनंतगुणहीन रूप से वेदन करता है । देशघाति को छह प्रशासक वृद्धिाचायनाबिहानसे वेदत करता है तथा नहीं भी करता है । इस कारण उसे भजनीय कहा है । किट्टीकदम्मि कम्मे के वीचारा दु मोहणीयस्स। सेसांण कम्माणं तहेव के के दु वीचारा ॥२१३|| -- संज्वलन कषाय के कृष्टि रूप से परिणत होने पर मोहनीय के कौन कौन दोचार (स्थिति घातादि लक्षण क्रिया विशेष) होते हैं ? इसी प्रकार ज्ञानाबरणादि शेष कर्मों के भी कोन कोन बीचार होते हैं ?
विशेष--"एत्थ वीचारा त्ति वुत्ते ठिदिघादादिकिरिया वियाग्या घेत्तवा", यहां वीचार के कथन से स्थिति घात आदि क्रिया विशेष जानना चाहिये (२२२९)। वे बीचार (१) स्थिति घात, (२) स्थिति सत्व (३) उदय (४) उदीरणा (५) स्थिति कांडक (६) अनुभागघात (७) स्थिति सत्कर्म या स्थिति संक्रमण (८) अनुभाग सत्कर्म (९) बंध (१०. बंधपरिहाणि के भेद से दशविध होते हैं।
सातवें वीचार को चूणिकार ने ठिदिसतकम् मे,' शब्द द्वारा स्थिति सत्कर्म नाम दिया है । जयधवलाकार ने उसका नाम स्थिति-संक्रमण भी कहा है 'अधवा ठिदिसंकमेंणेत्ति ऐमो सत्तमो वीचारो वत्तव्वो"। ऐसा कथन विरोध रहित है "विरोहाभावादो" । इन वीचारों के नाम अपने अभिधेय को स्वयं सुस्पष्ट रूपसे सूचित करते हैं। किं वेदेतो किटिं खवेदि किं चावि सं-छुहंतो वा संछोहणमुदएण च अणुपुत्वं अण्णुपुव्वं वा ॥२१४॥ -/ क्या क्षपक कृष्टियों को वेदन करता हुआ क्षय करता है मथवा संक्रमण करता हुअा क्षय करता है अथवा वेदन और