Book Title: Kashaypahud Sutra
Author(s): Gundharacharya, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 297
________________ = ( २२१ ) मार्गदर्शक : का विस्वनो बिर है। हातमा में जिनकी अपवर्तना संभव हैं, उनका देशघाती रूप से ही बंध करता है । - विशेष - जिन तीन घातिया कर्मों की प्रकृति में अपवर्तना संभव है, उनका देशघाती रूप से अनुभाग बंध करता है तथा जिनकी अपवर्तना संभव नहीं है, उनको सर्वघाति रूप से बांधता है। यहां घातियात्रय का स्थिति बंध संख्यात हजार वर्षो की जगह पर अंतर्मूहूर्तकम दश वर्ष प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिबंध होता है । १ शंका - तीनों घातिया कर्मो का अनुभाग बंध क्या सर्वघाती होता है या देशघाती होता है ? ~ समाधान - जिनकी अपवर्तना अनुभागबंध करता है तथा जिनकी सर्वघाती रूप से बांधता है । संभव है, उनका देशघाती अपवर्तना नहीं होती, उनको चरिमो बादररागो खामा- गोदाणि वेदरणीयं च । वसंत बंधदि दिवस संतो य जं सेसं ॥ २०६ ॥ चरम समयवर्ती चादर सांपरायिक क्षपक नाम, गोत्र तथा वेदनीय को वर्ष के अंतर्गत बांधता है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय रूप घातिया को दिवस के अंतर्गत बांधता है । विशेष – मोहनीय का चरिम स्थितिबंत्र प्रन्तमुहूर्त है "मोहपीयस्स चरिमो ठिदिबंधो तो मुहुत्तमेत्तो" । तीन घातिया का स्थिति बंध मुहूर्तं पृथक्त्व है "तिरहं धादिकम्माणं मुहुरापुतो द्विदिबंधो" (२२२२) १ अथाणुभागबंधी तिन्हं घादिकम्माणं किं सव्वधादी- देसघादि त्ति ? एदेसि घादिकम्माणं जेसिमोवट्टणा प्रत्थि ताणि देसघाणि बंदि । जेसि मोवट्टणा णत्थि ताणि सव्वषादीणि बंधदि (२२२१)

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