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( २२२ ) चरिमो य सहमरागो रणामा-गोदाणि वेदरणीयं च । ..
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज दिवसस्संतो बंधदि भिण्णमुहुत्ते तु जं सेसं ॥३१०॥
चरम समयवर्ती सूक्ष्मसापराय गुणस्थानवाला क्षपक नाम, गोत्र, वेदनीय को दिवस के अन्तर्गत बांधता है तथा शेष घातिया त्रय को भिन्न मुहूर्त प्रमाण बांधता है ।। - विशेष-चरम समयवर्ती क्षपक के नाम, गोत्र का स्थितिबंध पाठ मुहुर्त है । वेदनीय का द्वादश मुहूर्त है तथा घातिया त्रय का अंतर्मुहूर्त प्रमाण होता है--"चरिम समय सुहुमसांपराइयस्स णामागोदाणं दिदिबंधो अंतोमुहतं, ( अट्टमुहुत्ता ) वेदणीयस्स दिदिबंधो बारस मुहुत्ता, तिण्हं घातिकम्माणं टिदिबंधो अंतोमुहुन्न” । ( २२२३ ) अध सुदमादि-आवरणे च अतराइए च देसमावरणं ।
लद्धी यं वेदयदे सव्वावरणं अलद्धी य ॥ २११ ॥ - मतिज्ञानाबरण और श्रुतज्ञानावरण कर्मों में जिनकी लब्धि (क्षयोपशम ) का बेदन करता है, उनके देशघ्रांति प्रावरण रूप अनुभाग का देदन करता है । जिनको अलब्धि है, उनके सर्वावरणरूप अनुभाग का बेदन करता है। अन्तररायका देशघाति रूप अनुभाग वेदन करता है।
- विशेष -.-१ यदि सर्व अक्षरों का क्षयोपशम प्राप्त हुना है, तो वह श्रुतावरण और मतिज्ञानावरण को देशघाति रूप से वेदन करता है । यदि एक भी अक्षर का क्षयोपशम नहीं हुआ, तो मति
। १ जदि सव्वेसिमक्ख राणं खोवसमो गदो तदो सुदावरण मदियावरणं च देशबादि वेददि । अध एक्कस्सवि अक्खरस्स ण गदो खग्रोवसमो तदो सुदमदि-प्रावरणाणि सव्वघादीणि वेदयदि । एवमेदसि तिण्हं घादिकम्माणं जाति पयडीणं खोयसमो गदो तासि पयडीणं देसघादि उदयो । जासि पयडीणं खग्रोबसमो ण गदो तासि पयडीणं सवंघादि उदयो ( २२२५ )