________________
( १६६ ) प्रोकडिज्जेज्ज वा उक्कड्डिज्जेज्ज बा कामिज्जेज्ज वा उदोरिज्जेज्ज वा" ( २००६ )। एक्कं च हिदिविसेसं तु द्विदिविसेसेस कदिसु बढदि । हरसेदि कदिसु एगं तहागुभागेसु बोद्धव्वं ॥ १५५ ॥
एक स्थिति-विशेष को प्रसंख्यात स्थिति-विशेषों में बढ़ाता है, घटाता है । इसी प्रकार अनुभाग विशेष को अनंत अनुभाग स्पर्धकों में बढ़ाता है तथा घटाता है।
विशेष-यहां स्थिति उत्कर्षण सम्बन्धी जघन्य उत्कृष्ट निक्षेप के प्रमाण के विषय में पृच्छा की गई है। 'च' और 'तु' शब्दों के द्वारा उत्कर्षण विषयक जघन्य तथा उत्कृष्ट अति स्थापना के संग्रह का भी सूचित किया गया है । "हरसेदि कदिसु एगे" के द्वारा अपकर्षण सम्बन्धी जघन्य-उत्कृष्ट निक्षेप के प्रमाण निश्चयार्थ शंका की गई है । अनुभाग विषयक उत्कण प्राधिसमाजहाज और उत्कृष्ट निक्षेप के विषय में तथा जघन्य और उत्कृष्ट प्रति स्थापना के प्रमाण में पृच्छा हुई है। एक्कं च हिदिविसेसं तु असंखेज्जेसु द्विदिविसंसेसु । बढदि हरस्सेदि च तहाणुभागे सणतेसु ॥१५६ ॥
एक स्थिति बिरोष को असंख्यात स्थिति बिशेषों में बढ़ाता है तथा घटाता है । इसी प्रकार अनुभाग विशेष को अनंत अनुभाग स्पर्धकों में बढ़ाता तथा घटाता है। . द्विदि अणभागे अंसे के के वढदि के व हरस्सेदि । केसु अबढाणां वा गुणेण किं वा विसेसेण ।। १५७॥
स्थिलि तथा अनुभाग सम्बन्धो कौन कौन अंशों कम प्रदेशों को बढ़ाता, अथवा घटाता है अथवा किन किन अंशों में अवस्थान करता है ? यह वृद्धि, हानि तथा अवस्थान किस किस गुण से बिशिष्ट होता है।