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अध सुद-मदिउवजोगे होंति अभज्जाणि पुव्धबद्धाणि । भज्जाणि च पञ्चक्खेसु दोसु छदुमत्थखाणेसु ॥१८८६ ॥
श्रुत, कुश्रुतरूप उपयोग में, मति, कुमति रूप उपयोग में पूर्वबद्ध कर्म अभाज्य है, किन्तु दोनों प्रत्यक्ष छद्मस्थज्ञानों में पूर्वबद्ध कर्म भजनीय हैं।
सुविधिसागर जी महाराज
विशेष मानक: "सुरणाचे देसु चसु उवजोगेसु पुत्रबद्धाणि पियमा अत्थि" श्रुतज्ञान कुश्रुतज्ञान, मतिज्ञान कुमतिज्ञान इन चार उपयोगों में पूर्वबद्ध कर्म नियम से पाए जाते हैं । "श्रहिणाणे प्रणाणे मणपज्जवणाणे एदेसु तिसु उवजोगेसु पुव्वाणि भजियव्वाणि, अवधिज्ञान, विभंगज्ञान, मन:पर्ययज्ञान इन तीन उपयोगों में पूर्वबद्ध कर्म भजनीय हैं। वे किसी के पाये जाते हैं, और किसी के नहीं पाये जाते ।
कम्माणि भज्जाणिदु अणगार - अचक्खुदंसणुवजोगे । हिसणे पुण उवजोगे होंति भज्जाखि ॥ १६०॥
अनाकार अर्थात् चक्षुदर्शनोपयोग तथा श्रचक्षुदर्शनोपयोग में पूर्वबद्ध कर्म अभाज्य हैं । अवधि दर्शन उपयोग में पूर्वबद्धकर्म कृष्टि वेदक क्षपक के भाज्य हैं ।
< विशेष— यहां अनाकार उपयोग सामान्य निर्देश होते हुए भी पारिशेष्य न्याय से चक्षुदर्शनोपयोग का हो ग्रहण करना चाहिए" एत्थ अणगारोवजोगे त्ति सामण्णद्दि से वि परिसेसिय-णाएण चक्खुदंसणोवजोगस्सेव गहणं कायन्व' ( २११३ )
प्रश्न – अवधिदर्शन : योग को भाज्य क्यों कहा है ?
/ समाधान - " ओहिदंसणा व रणक्खस्रोवसमस्स सव्वजी वेसु संभवावलंभादो" अवधिदर्शनावरण का क्षयोपशम सर्व जीवों में संभव नहीं है । इससे इस उपयोग को भाज्य कहा है, क्योंकि यह किसी क्षपक के पाया जाता है तथा किसी के नहीं भी पाया जाता है।