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. उपशम श्रेणी से नीचे गिरने वाले के सूक्ष्मसांपराय के प्रथम समय से दोनों ही करण प्रवृत्त होते हैं । 'पडिवदमाणगो पुण पढमसमयकसायप्पहुडि प्रोकड्डगो वि उक्कड्डगो वि ( २०७५ ) गुणसेढि अांतगुणा लोभादी कोध-पच्छिमपदादो। कम्गस्स य अणुभागे किट्टीए लक्खयां एदं ।। १६५ ॥
लोभ की जघन्य कृष्टि को आदि लेकर क्रोध कषायको सर्व पश्चिमपद ( अंतिम उत्कृष्ट कृष्टि ) पर्यन्त यथाक्रमसे अवस्थित चारों संज्वलन कषाय रुप कर्म के अनुभाग में गुणश्रेणी अनंतगुणित हैं। यह कृष्टि का लक्षण है।
विशेष—पश्चार प्रानुपूर्वी की अपेक्षा कृष्टि का स्वरुप यहां कहा गया है, कि लोभ कषाय की जघन्य कृष्टि से लेकर क्रोध की उत्कृष्ट कृष्टि पर्यन्त कषायों का अनुभाग अनंतगणित वद्धिाप है। हाराज ____ पूर्वानुपूर्वी की अपेक्षा संज्वलन क्रोध की उत्कृष्ट कृष्टि से लेकर लोभ की जघन्य कृष्टि पर्यन्त कषायों का अनुभाग उत्तरोत्तर अनंतगुणित हानि रुप से कृश होता है ।
लोभ की जघन्य कृष्टि अनुभाग की अपेक्षा स्तोक है । द्वितीय कृष्टि अनुभाग की अपेक्षा अनंतगुणी है। तृतीय कृष्टि अनुभाग को अपेक्षा अनंतगुणी है । इस प्रकार अनंतर अनंतर क्रम से सर्वत्र तब तक कृष्टियों का अनंतगुणित अनुभाग जानना चाहिये, जब तक क्रोध की अंतिम उत्कृष्ट कृष्टि उपलब्ध हो। संज्वलन क्रोध की उत्कृष्ट कृष्टि अपूर्व स्पर्धक की प्रादि वर्गणा के अनंतवें भाग है। इस प्रकार कृष्टियों में अनुभाग स्तोक है, "एवं किट्टीसु थोवो अणुभागो" । "किसं कम्मं कदं जम्हा तम्हा किट्टी"--- जिसके द्वारा कर्म कृश किया जाता है, उसे कृष्टि कहते हैं । कदिसु च अणुभागेसु च द्विदीसु वा केत्तियासु का किट्टी। सव्वासु वा द्विदीसु च आहो सव्वासु पत्तेयं ॥१६६ ॥