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अनंतर पुरुषवेद तथा हास्यादि छह का क्रोध संज्वलन में संक्रमण मार्गदर्शक :- अाजयी बोगसंजाल सामान संज्वलन में, मान संज्वलन
का माया संज्वलन में तथा माया संज्वलन का लोभ संज्वलन में संक्रमण करता है। वह लोभ संज्वलन का अन्य प्रकृतिरुप में परिवर्तन नहीं करता है । लोभ संज्वलन का अपने ही रुप में क्षय करता है। संछुइदि पुरिसवेदे इत्थीवेदं रणवुसयं चेव । सत्तेव गोकसाये णियमा कोहम्मि संछुहदि ॥ १३८ ॥
स्त्रीवेद तथा नपुंसकवेद का नियमसे पुरुषवेद में संक्रमण करता है । पुरुषवेद तथा हास्यादि छह नोकषाय इन सम्म नोकषायों का नियमसे संज्वलन कोध में संक्रमण करता है।
विशेष-"इत्थीवेदं णवंसयवेदं च पुरिसवेदे संछुहदि ण अण्णत्थ सत्तणोकसाए कोधे संछुहदि ण अण्णा त्थ" । ( १९८८ ) स्त्रीवेद तथा नपुंसकवेद को पुरुषवेद में संक्रमण करता है, अन्यत्र संक्रमण नहीं करता है । सप्त नोकषायों का संज्वल क्रोच में मंक्रमण करता है । अन्यत्र संक्रमण नहीं करता है । कोहं च छुहइ माणे माणं मायाए णियमा संछुहइ। मायं च छुहइ लाहे पडिलोमो संकमो णस्थि ॥ १३६ ॥ ___ क्रोध संज्वलन को मान संज्वलन में संक्रान्त करता है। मान संज्वलन को माया संज्वलन में संक्रान्त करता है । माया संज्वलन को लोभ संज्वलन में संक्रान्त करता है। इनका प्रतिलोम अर्थात् विपरीत क्रम से संक्रमण नहीं होता है ।
विशेष—यहां "पुब्बाणुपुब्बीविसयो कमो परुविदो"-पूर्वानुपूर्वी रुप से विषय क्रम कहा है । "पडिलोमेण पच्छा णुपुबीए संकमो पत्थि"-प्रतिलोम रुप से अर्थात् पश्चात् प्रानुपूर्वी से संक्रमण नहीं होता है । ( १९८६)