________________
( १८२ ) बारहवें गुणस्थान में एकत्व विलकं अवीचार शुक्लध्यान के द्वारा सोलह प्रकृतियों का नाश करके सयोगीजिन होता है। प्रयोगीजिन होकर वह पच्यासी प्रकृतियों का क्षयकर सिद्ध भगवान होता है। संकामयपट्टवगस्स किंडिदियाणि पुत्वबद्धाणि । केसु व अणुभांगसु य सकर्त की समसकत ज ॥
संक्रमण प्रस्थापक के पूर्ववद्ध कर्म किस स्थिति वाले रहते हैं ? वे किस अनुभाग में वर्तमान हैं ? उस समय कौन संक्रान्त है तथा कौन कर्म असंक्रान्त हैं ?
विशेष- प्रश्नः-संक्रमण प्रस्थापक किसे कहते हैं ?
उत्तर-"अंतरकरणं समाणिय जहाकम णोकम्मक्खवणमाढवेतो संकामणपट्ठवगोणाम" ( १९७३ ) । अन्तरकरण समाप्त करके क्रमानुसार नो कषायों के क्षपणको प्रारम्भ करने वाला संयमी जीव संक्रमण प्रस्थापक कहलाता है। संकमणपट्टवगस्स मोहणीयस्स दो पुरण द्विदीओ। किंचरिणयं महत्तं णियमा से अन्तरं होई ॥ १२५ ॥ ___ संक्रमण-प्रस्थापक के मोहनीय की दो स्थितियां होती हैं १) एक प्रथम स्थिति (२१ द्वितीय स्थिति । इनका प्रमाण कुछ न्यून मुहूर्त है । इसके पश्चात् नियम से अन्तर होता है।
विशेष-"मोहणीयस्स" पद के द्वारा इस संभावना का निराकरणा हो जाता है, कि ये दो स्थितियां संपूर्ण ज्ञानावरणादि में नहीं हैं, केवल मोहनीय कर्म में हैं । "ण सेसाणं कम्माणमिदि वक्वाणं कायब्व"- शेष कर्मों में ये दो स्थितियां नहीं है, यह व्याख्यान करना चाहिये।
N