Book Title: Kashaypahud Sutra
Author(s): Gundharacharya, Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 247
________________ देखा जाता है। इससे संक्रम अनंतगुणा है। उससे सत्कर्म अनंतगुणा है। नपुंसकयेद की अनुत्कृष्ट-अजघन्य प्रदेश उदीरणा स्तोक मागहीक्ससेअपय ददविनसम्परतयुणिताहज| उससे उत्कृष्ट उदय विशेषाधिक है। उससे जघन्य संक्रमण प्रसंख्यातगणित है। उससे उपमांत किया जाने वाला जघन्य द्रव्य असंख्यातगुणित है। उससे जवन्य सत्कर्म असंख्यातगुणित है । उससे संक्रान्त किया जाने वाला उत्कृष्ट द्रव्य असंख्या नगुणित है। उससे उत्कृष्ट सत्कम असंख्यातगुणित है। यह सब अन्तरकरण के दो समय पश्चात् होने वाले नपुन्सकवेद के प्रदेशाग्न का अल्पबहुत्व है । स्त्रीवेद का अल्पबहुत्य भी इसीप्रकार जानना चाहिए। पाठकषाय, छहनोकषायों का उदय और उदोरणा को छोड़कर अल्पबहुत्व जानना चाहिये । पुरुषवेद तथा चार संज्वलनों के अल्पबहुत्व को जानकर लगाना चाहिये । उनके अल्पबहुत्व में बपद सबसे स्तोक हैं। अब "केवचिरंमुवसामिज्जदि" इस तीसरी गाथा को विभाषा को छोड़कर "कं करणं वोच्छिज्जदि" इस चतुर्थ गाथा को विभाषा करते हैं, कारण इससे तृतीय गाथा का प्रायः निरुपण हो जाता है। प्रश्न-कौन करण कहां पर व्युच्छिन्न होता है ? कोन करण कहां पर अव्युच्छिन्न होता है ? समाधान-- इस सम्बन्ध में पहले करणों के भेद गिनाते है "अटुविहं तात्र करण" करण के पाठ भेद हैं। (१) प्रशस्तउपशामना करण (२) निधत्तीकरण (३) निकाचनाकरण (४) बंधकरण (५) उदीरणाकरण (६) अपकर्षणकरण (७) उत्कर्षणकरण (८) संक्रमणकरण । इन पाठ करणों में से अनिवृत्तिकरण के प्रथम समय से सभी कर्मों के अप्रशस्तोपशामना, निधत्ति और निकाचनाक रणों को व्युच्छिति होती है । उस समय आयुकर्म तथा वेदनीय को छोड़कर शेष कर्मों के पांच करण होते हैं । आयु के केवल उद्वर्तनाकरण

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