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( ) सम्यक्त्व प्रकृति की अनुभाग उदी रणा देशघाती है । वह एक स्थानीय और द्विस्थानिक है । "एयवाणिया वा दृढाणिया वा"
१ संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ तथा स्रीवेद, नपुंसकवेद और पुरुषवेद की अनुभाग-उदीरणा देशघाती भी है, सर्वघाती भी है । बह एक स्थानिक, द्विस्थानिक, त्रिस्थानिक तथा चतुःस्थानिक भी है । "चदुसजलण-तिवेदाणमणुभागुदीरणा देसघादी सम्बधादी वा एगट्ठाणिया वा दृट्ठाणिया, तिढाणिया चउट्टाणिया वा” (१४९२)
संज्वलन चतुष्क और वेदत्रय जघन्य अनुभाग की अपेक्षा देशघाती हैं । अजघन्य और उत्कृष्ट अनुभाग की अपेक्षा दोनों रुप. भी है । मिथ्या दृष्टि से लेकर असंयतमम्यष्टि पर्यन्त संक्लेश और विशुद्धि के निमित्त से उक्त प्रकृतियों की अनुभाग-उदीरणा सर्वघाती तथागदेशकाती दोनों हैं श्रीसंझुम्बाससागर अादिहाप्रथानों में अनुभाग-उदीरणा देशघाती मात्र है । वहां सर्वघाती उदीरणा का उस गुणस्थान रुप परिणमन के साथ विरोध है। हास्यादि छह नोकषायों की अनुभाग उदारणा देशपाती तथा सर्वघाती भी है। द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय तथा चतु:स्थानीय भी है। ___ संयतासंयतादि उपरिम गुणस्थानों में हास्यादिषट्क की अनु. भाग उदीरणा द्विस्थानीय है तथा देशघाती है। सासादन, मिश्र तथा अविरत सम्यक्त्वो तक द्विस्थानीय तथा देशघाती है तथा सर्वघाती भी है । मिथ्यादृष्टि को अनुभाग उदीरणा द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय तथा चतुःस्थानीय है।
- - - १ एतदुक्तं भवति-मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असजदसम्माइट्टि ताव एदेसि कम्माणमणु-भागुदीरणाए सबघादी देसघादी च होदि । संकिलेसविसोह्विसेण संजदासंजदप्पहुडि उबरि सन्धत्थेव देसघादी होदि । तत्थ सव्वधादिउदीरणाए तगुणपरिणामेण सह विरोहादो त्ति ( १४९२)