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{ १४३ ) मासादन सम्यग्दृष्टि अथवा सम्यग्मिथ्यारष्टि जीव में उक्त तीनों प्रकृतियों की मत्ता रहते हुए भी उन तीनों प्रकृतियों का संक्रमण नहीं होता क्योंकि सासादन तथा मिश्र गुणस्थान में संक्रमणा की शक्ति नहीं होती है। पत्रिीय नेमियन्मसिद्धासचिनयता नाकहान:
सम्म मिच्छं मिस्सं सगुणट्ठाणम्मि णेत्र संक्रमदि । सासण-मिस्से णियमा दसतियसंकमोत्थि ॥ गो. क. ४११ ॥
सम्यक्त्व, मिथ्यात्व तथा मिश्र प्रकृति का असंयतसम्यक्त्व मिथ्यात्व तथा मिश्रगुण स्थान में संक्रमण नहीं करता है। सासादन तथा मिश्र गुणस्थान में दर्शन मोह की तीन प्रकृतियों का संक्रमण नहीं होता है। "असंयतादि-चतुर्वस्तोत्यर्थ:"-असंयतादि चार गुणस्थानों में संक्रमण होता है ( गो, क. संस्कृत टीका पृष्ठ ५८४)
सम्यक्त्व प्रकृति की उद्वेलना करने वाले मिथ्यादृष्टि के जिस समय वह प्रावली प्रविष्ट रहता है,उस के दर्शन-मोहत्रिक की सत्ता रहते हुए भी एक का संक्रमण होता है अथवा मिथ्यात्व का का क्षपण करने वाले सम्यक्त्वी के जिस समय उदयावली वाहा स्थित सर्व द्रव्य का क्षपण किया जाता है, उस समय उसके दर्शन मोत्रिक को सत्ता रहते हुए भी एक का ही संक्रमण होता है।
दर्शन मोहत्रिक की सत्ता युक्त जीव स्यात् दो का, स्यात् एक का संक्रामक होता है तथा स्यात् एक का भी संक्रामक नहीं होता है । इस प्रकार उसके भजनीयता जानना चाहिये ।
जिसने मिथ्यात्व का क्षय किया है, ऐसे वेदक सम्यक्त्वी में या सम्यक्त्व प्रकृति के उद्वेलन करने वाले मिथ्यादृष्टि में दो की सत्ता रहते हुए भी तब तक एक ही प्रकृति का संक्रमण होता है, जब तक कि क्षय को प्राप्त या उद्वेलित सम्यग्मिथ्यात्व अनावली प्रविष्ट है। जब वह सम्यग्मिथ्यात्व आवली प्रविष्ट होता है, तब उस सम्यक्त्वी या मिथ्यादृष्टि के संक्रमण न होने से भजनीयता