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( १६१ ) चारित्रमोहोपशामना-अनुयोगद्वार उवसामणा कदिविर्धावसामा कस्स कैस्स कम्मस्स। कं कम्म उवसंतं अणउवसंतं च कं कम्मं ॥ ११६ ॥
उपशामना के कितने भेद हैं ? किस किस कमं का उपशम होता है ? किस अवस्था में कौन कर्म उपशान्त रहता है तथा कौन कर्म अनुपसांत रहता है ? कदिभागुवसामिज्जदि संकमणमुदीरणा च कदिभागो। कदिभागं वा बंधदि टिदिअणुभागे पदेसग्गे ॥ ११७ ॥ ___ चारित्र मोहकी स्थिति, अनुभाग और प्रदेशाग्रों का कितना भाग उपमित होता है ? कितना भाग संक्रमण और उदीरणा को प्राप्त होता हैं ? कितना भाग बंध को प्राप्त होता है ? केवचिरमवसामिज्जदि संकमणमुदीरणा च केवचिरं । केवचिरं उवसंतं अणउवसंतं च केवचिरं ॥ ११८ ॥
चारित्र मोहको प्रकृतियों का कितने काल पर्यन्त उपशमन होता है ? कितने काल पर्यन्त संक्रमण, उदीरणा होती हैं। कौन कर्म कितने काल पर्यन्त उपशांत तथा अनुपशांत रहता है ? के करणं वोच्छिज्जदि अश्वोच्छिण्णच होइ कंकरणं । कं करणं उवसंतं अणउवसंतं च के करणं ॥११६।। कौन करण ब्युच्छिन्न होता है ? कौन करण अन्युच्छिन्न होता है ? कौन करण उपशान्त रहता है ? कौन करण अनुपशांत रहता है ?
विशेष-“एदारो चत्तारि सुत्तगाहामो उक्सामग-परवणाए पडिबद्धाओ, उरिम चत्तारि गाहारो तस्सेव पडिवादपदुप्पायणे पडिबद्धाम्रो"--पूर्वोक्त चार सूत्र गाथाएं उपशामक प्ररुपणा से