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१६७ ) शक्य न हो अर्थात् जिसकी उदीरणा न की जा सके, उसे अप्रशस्तोपशामना कहते हैं। जिस कर्म में उत्कर्षण, अपकर्षण हों, किन्तु उदीरणा और पर-प्रकृति रुप संक्रमण न हो, उसे निधत्तीकरण कहते हैं । जिस कर्म में उत्क्रपण, अपकर्षण, उदीरणा तथा संक्रमण न हों तथा जो सत्ता में तदवस्थ रहे, उसे निकाचना
करण कहते हैं। मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
प्रश्न-सूत्र गाथा में प्रश्न उठाया है, "उवसामणा कदिविधा?" ( गाथा ११६ ) उपशामना के कितने भेद है ?
उसर-चूणिसूत्रकार कहते हैं, "उवसामणा दुविहा करणोवसामणा च प्रकरणोबसामणा च' (पृ. १८७१) उपशामना (१) करणोपशामना ( २ ) प्रकरणोपशामना के भेद से दो प्रकार है । प्रकरणोपशामना को अनुदीर्णोपशामना भी कहते हैं । “एसा कम्मपवादे"-यह कर्मप्रवाद नामके पाठवें पूर्व में विस्तारपूर्वक कही गई है। ___ करणोपशामना के दो भेद है, ( १ ) देशकरणोपशामना (२) सर्वकरणोपशामना । "देसकरणोवसामणाए दुवे णामाणि देसकरणोवसामणा ति वि अप्पसत्थ-उवसामणात्ति वि-"देशक रणोपशामना के दो नाम हैं। एक नाम देशकरणोपशामना है तथा दूसरा नाम अप्रशस्त उपशामना है। इसका विस्तारपूर्वक कथन कम्मपयडो प्राभूत में किया गया है । यह द्वितीय पूर्व को पंचम बस्तु से प्रतिबद्ध चतुर्थ प्राभृत नामका अधिकार है । “तत्थेसा देसकरणोवसामणा दट्ठव्वा"- वहाँ देशकरणोपशामना का वर्णन देखना चाहिए।
सर्वकरणोपचामना के सर्वकरणोपशामना तथा प्रशस्त. करणोपशामना ये दो नाम है, “जा सा सव्वकरणोवसामणा तिस्से घि दुवे णामाणि सन्धकरणोवसामणा ति वि पसत्थकरणोवसामणा