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विशेष – इस गाथा के
भार्गदर्शक
स्वस्थान अल्पबहुत्व को सूचना :- आचार्य श्री सुविधिसीगर जी महाराज दी गई है । जैसे लता स्थानीय मान को उत्कृष्ट प्रोर जवन्य वर्गणाओं में अनुभाग और प्रदेश की अपेक्षा अत्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार शेष पंद्रह स्थानों में भी अल्पबहुत्व जानना चाहिये । गियमा लदासमाणो दारुसमायो अांतगुणहीणो । ऐसा कमेण हीणा गुणेण शियमा अते ॥७६॥
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लता समान मानसे दारु समान मान प्रदेशों की अपेक्षा नियम से अनंतगुणित होन है । इसी क्रम से शेष अर्थात् दारु समान मान से अस्थि समान मान तथा अस्थि समान मानसे शैलसमान मान नियम से अनंतगुणित होन हैं ।
यिमा लदासमाखो शुभागग्गेण वग्गग्गेण । ऐसा कमेरा अहिया गुण शियमा अते ॥७७॥
लता समान मानसे शेष स्थानीय मान अनुभाग तथा वर्गणाग्र की अपेक्षा क्रमशः नियम से अनंतगुणित अधिक होते हैं ।
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विशेष- १ यहां अग्र शब्द समुदायका वाचक है । अनुभाग समूह को अनुभागार, वर्गणा के समूह को वर्गणाग्र कहते हैं । अथवा अनुभाग ही अनुभागाग्रः वर्गणा ही वर्गणाग्र जानना चाहिये | अग्रशब्द का अविभाग प्रतिच्छेद भी अर्थ होता है । इस दृष्टि से यह भी अर्थ किया जा सकता है, कि लता स्थानीय मान के अनुभाग संबंधी विभाग प्रतिच्छेदों के समुदाय से दारु स्थानीय मान के अनुभाग संबंधी प्रविभाग प्रतिच्छेदों का समूह अनंतगुणा है । दारु स्थानीय से ग्रस्थि संबंधी तथा अस्थि संबंधी से शैल संबंधी प्रविभाग-प्रतिच्छेद अनंतगुणित हैं ।
१ एत्थ अग्गसद्दो समुदायत्थवाचश्रो । अणुभागसमूहो अणुभागग्गं, वग्गणासमूहो वग्गणाग्गमिदि । अथवा अणुभागो चेव अणुभागग्गं, वग्गणात्र चेव वग्गणास्गमिदि घेत ( १६७९ )