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व्यंजन अनुयोगद्वार कोहो य कोच रोसोय अक्खम संजलण कलह वड्ढीय। झझा दोस विवादो दस कोहेयटिया होति ॥ ८६ ॥
क्रोध, कोप, रोष, अक्षमा, संज्वलन, कलह, वृद्धि, झंझा, द्वेष औरगावदिये दाऋधिक समिथिवाची जी महाराज
“विशेष-क्रोध, कोप, रोष का अर्थ स्पष्ट है। क्रोध-कोप-शेषा धात्वर्थ सिद्धत्वात्सुबोधाः ।" अमर्ष को प्रक्षमा कहते हैं । जो स्व एवं पर को जलावे, वह संज्वलन है। कलह का भाव सुप्रसिद्ध है। "वर्धन्तेस्मात्पापाशयः कलहबैरादय इति वृद्धिः" क्रोध से पाप भाव, कलह वैर आदि की वृद्धि होने से उसे वृद्धि कहा है। यह अनर्थों का मूलकारण है-'सर्वेषामनर्थानां तन्मूलन्वात् ।' तीव्रतरसंक्लेश परिणाम को झंझा कहते हैं। 'झंझा नाम तीव्रतर संक्लेश परिणामः । अन्तरंग में कलुषता धारण करने को द्वेष कहते हैं। 'द्वेषः अप्रीतिरन्तःकालुष्य मित्यर्थः । विरुद्ध कथन विवाद है । उसे स्पर्धा, संघर्ष भी कहते हैं। 'विरुद्धो वादो विवादः स्पर्द्ध: संघर्षः इत्यनर्थान्तरम्' (पृ. १६९०) - क्रोधः कोपो रोषः संज्वलनमधाक्षमा तथा कलहः ।
झंझा-द्वेष-विवादो वृद्धिरिति क्रोध-पर्यायाः ॥
माण मद दप्प थंभो उक्कास पगास तध समुक्कस्सो। अत्तुक्करिसो परिभव उस्सिद दसलक्खणो माणो ॥७॥
मान, मद, दर्प, स्तंभ, उत्कर्ष, प्रकर्ष, समुत्कर्ष, प्रात्मोत्कर्ष, परिभव तथ उसिक्त ये दशनाम मान कषाय के हैं। - विशेष-"जात्यादिभिरात्मानं प्राधिवयेन मननं मानः"-जाति आदि की अपेक्षा अपने को अधिक समझना मान है) "तैरेवावि: