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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
( ११६ ) बाह्य रूप में प्रगट नहीं होने देना गूहन है "निगृहनमंतर्गतदुराशयस्य बहिराकारसंवरणं।" गुप्त प्रयोग को छन्न कहते हैं, "छन्नं छद्मप्रयोगः' । ( १६९१ )
कामो राग णिदाणो छंदो य सुदो य पेज-दोसोय । रोहाणुराग मासा इच्छा मुच्छ। य गिद्धी य॥ ८ ॥ सालद पत्थण लालस अविरदि तण्हायविज जिब्भा य। लोभस्सय णामधेज्जा वीसं एट्टिया भणिदा ॥ १० ॥ - काम, राग, निदान, छंद, स्वता, प्रय, द्वेष, स्नेह, अनुराग, आशा, इच्छा, मूर्छा, गृद्धि, सापाला या शाश्वत, प्रार्थना, लालमा, अविरनि, तृष्णा, विद्या तथा जिह्वा ये लोभ के एकार्थक बीस नाम है।
विशेष- 'कमनं काम:-इष्टदारांपत्यादिपरिग्रहामिलाप इति" इष्ट स्त्री, पुत्रादि परिग्रह की अभिलाषा काम है। रंजनं राग:-मनोजविषयाभिध्वंगः"-मनोज्ञ विषयों की प्रासक्ति राग है ! जन्मान्तर संबंधी संकल्प निदान है-"जन्मान्तरसंबंधेन निधीयते संकलप्यते इति निदानं ।' मनोनुकूल वेषभूषा में चित्त को लगाना छंद है-'छंदनं छंदो मनोनुकूल विषयाननुभूषायां मनः प्रणिधानम् ।'
" अनेक विषयों की अभिलाषा रूप कलुषित परिणामात्मक जल से प्रात्मा का सिंचन 'सुद' । सुत ) कहा है । अथवा स्व शब्द आत्मीय का पर्यायवाची हैं। स्व का भाव स्वता अर्थात् ममकार या ममता है । वह जिसमें है वहस्वेता या लोभ है। "सूयतेऽभिषिच्यते विविध विषयाभिलाषकलुषसलिल परिषेकैरिति सुतो लोभः । अथवा स्वशब्द आत्मीयपर्यायवाची। स्वस्य भावः स्वता ममता ममकार इत्यर्थः । सास्मिन्नस्तीति स्वेता लोभः ( १६९१) - प्रिय पदार्थ की प्राप्ति के परिणाम को 'पेज्ज' अथवा प्रेय कहा है । दूसरे के वैभव प्रादि को देखकर उसकी अभिलाषा करना 'दोस' अथवा द्वेष है।