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मम्यक्त्वानुयोग सम्यक्त्व को शुद्धि के लिए सम्यक्त्व अधिकार कहते है "सम्मत्तसुत्तिहेउं वोच्छं सम्मत्तमहियारं" :दंसमोह-उवसामगस्स परिणामो केगिसो भवे । जोगे कसाय-उवचोगे लेस्सा वेदो य को भवे ॥६॥
दर्शनमोह के उपशामक का परिणाम किस प्रकार होता है ? किस योग, कषाय और उपयोग में वर्तमान, किस लेश्या तथा वेद युक्त जीव दर्शन मोह का उपशामक होता है ?
विशेष—प्राचार्य यतिवृषभ ने कहा है "एदारो चत्तारि सुत्तगाहाम्रो प्रधापवत्तस्स पढमसमए परुधिदन्वायो" ( ६६९४) ये चार गाथाएं है ( गाथा नं० ११, ९२, ९३, ९४ ), जिन्हें अधः मार्गप्रश्रुतकर पााका समयमामाहला सशरिये।।
प्रश्न-दर्शन मोह के उपशामक का परिणाम कैसा होता है ?
समाधान-दर्शन मोह के उपशामक का परिणाम विशुद्ध होता है, क्योंकि वह इसके अन्तर्मुहूर्त पूर्व से ही अनंतगुणी विशुद्धि से युक्त होता हुआ चला पा रहा है । __ 'विशुद्धतर' का स्पष्टीकरण करते हुए भाष्यकार कहते हैं, "अधःप्रवृत्त करणप्रथमसमयमधिकृत्यैतत्प्रतिपादितं भवति" (१६९५) अधःप्रवृत्तकरण के प्रथम समय की अपेक्षा यह कथन किया गया है।
अधःप्रवृत्तकरण के प्रारम्भ समय में ही परिणाम विशुद्धता को प्राप्त होते हैं । इस विषय में यह ज्ञातव्य है कि इसके अन्तर्मुहूर्त पूर्व ही भावों में विशुद्धता उत्पन्न हो जाती है। सम्यक्त्वरूप रत्न की प्राप्ति के पूर्व ही क्षयोपशम, देशना आदि लब्धि के कारण प्रात्मा की सामर्थ्य वृद्धि को प्राप्त होती है। संवेग, निर्वेद आदि