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चतुः स्थान अनुयोग द्वार. कोहो चउबिहो वुत्तो माणोवि चउब्विहो भवे । माया चउचिहा वुत्ता लोभो विय चउविहो ॥७॥
क्रोध चार प्रकार का कहा गया है। मान भी चार प्रकार का है। माया भी चार प्रकार की कही गई है। लोभ भी चार. प्रकार का कहा गया है।
विशेष—यहां क्रोधादि के भेद अनंतानुबंधी प्रादि की विवक्षा नही सोदाहै, क्योंकि आकावाति निश्चतिहासादि में पहले ही पूर्ण निर्णय हो चुका है । इस अनुयोग द्वार में लता, दारु, अस्थि, शैल आदि स्थानों का वर्णन होने से चतुः स्थान अमुयोगद्वार नाम सार्थक है।
"कोहो दुविहो सामण्ण कोहो विसेसकोहो चेदि" (१६७६)क्रोध (१) सामान्य क्रोध (२) विशेष क्रोध के भेद से दो प्रकार है । णग-पुढवि-चालुगोदय राई-सरिसो चउबिहो कोहो । सेल-घरण-अट्टि-दारुअ-लदासमारणो हवदिमारणो॥७१॥ ___ क्रोध चार प्रकार का है। नगराजि प्रथति पर्वत की रेखा समान, पृथ्वी की राजि १ समान, बालुका राजि समान और जल की रेखा समान वह चार प्रकार है। ___ मान-शैलधन समान, अस्थि समान, दारु (काछ) समान तथा लता समान चतुर्विध है। १ राइसबो रेहा पज्जाय वाचनी घेत्तव्बो (पृष्ठ १६७७) सिल-पुढविभेद धूली-जल-राइ-समाणनो हवे कोहो । णारय-तिरिय-परामर-गईसु उध्यायग्रो कमसो ।। २८४ ॥ सेलट्ठि-कट्ठ-बेते णियभएणणु हरंतो माणो।। णारय-तिरिय णरामर-गईसु उपायो कमसो ॥२८५॥ जी. गो.