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( १८ ) तिर्यचों के माया का उत्कृष्टकाल उनके उत्कृष्ट क्रोधकाल से विशेष अधिक है। मनुष्य-तिर्यंचों के लोभ का उत्कष्टकाल उनके मायाकालसे विशेषाधिक है।
नरकगति में क्रोध का उत्कृष्टकाल मनुष्यों तथा तिर्यंचों के उत्कृष्ट लोभकाल से संख्यातगुणा है। देवगति में लोभ का उत्कृष्ट काल नरकगति के उत्कृष्ट लोभकाल से विशेषाधिक है।
गाथा ६३ में यह कहा है "को वा कम्हि कसाए अभिक्खमुवजोगमुवजुत्तो" ? कौन जीव किस कषाय में निरन्तर एक सदृश उपयोग से उपयुक्त रहता है ? इस विषय में यह स्पष्टीकरण किया गया है।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज शंका-"अभिक्खमुबजोगमुवजुत्तो" वाक्य में प्रागत 'अभिक्ख. मुवजोग' अभीक्षण उपयोग का क्या भाव है ?
समाधान-अभीक्ष्ण उपयोग का भाव है बार बार उपयोग। एक जीव के एक कषाय में पुनः पुनः उपयोग का जाना अभीक्ष्ण उपयोग है-"अभीक्षणमुपयोगो मुहुमुहुरुपयोग इत्यर्थः । एकस्य जीवस्यैकस्मिन् कषाये पौनःपुन्येनोपयोग इति यावत्" (१६२२)
प्रोध की अपेक्षा लोभ, माया, क्रोध तथा मान में अवस्थित रुप परिपाटी से असंख्यात अपकर्षों के व्यतीत होने पर एक बार लोभकसाय के उपयोग का परिवर्तनबार अतिरिक्त होता है। प्रर्थात् अधिक होता है। - कषायों के उपयोग का परिवर्तन इस क्रमसे होता है।
रोघेण ताव लोभो मा क्रोधो माणो ति प्रसंखेज्जेसु आगरिसेसु गदेसु सई लोभागरिसा प्रदिरेगा भवदि । १६२२