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( ८० ) प्राचार्य यतिवृषभ ने कहा है, "चदुसंलजण-णबणोकसायाणमणुभागउदीरणा एइंदिए वि देसघादी होइ” (१४९२) संज्वलन चतुष्क और नोकषाय नवक की अनुभाग उदीरणा एकेन्द्रिय में देशघाती ही होती है।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिधसागर जी महाराज प्रदेश उदीरणा :
यह प्रदेश उदीरणा (१) मूलप्रकृति प्रदेश उदीरणा (२) उत्तर प्रकृतिप्रदेश उदीरणा के भेद से दो प्रकार की है।
- मूलप्रकृति प्रदेश-उदीरणा का प्रतिपादन तेईस अनुयोग द्वारों से हुआ है।
"मूलपडिपदेसुदीरणाए तत्थेमाणि तेवीस अणियोगद्दाराणि समुक्कित्तणा जाव अप्पाबहुए ति भुजगार-पदणिक्खेव-वडिलउदीरणा चेदि" (१५४१)
· उत्तर-प्रकृति-प्रदेश-उदोरणा का वर्णन चौबीस अनुयोग द्वारों से हुआ है। - १ मिथ्यात्वको उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणा संयमके अभिमुख चरमसमयवर्ती मिथ्यादृष्टि जीव के होती है। वह जीव मिथ्यात्व का परित्यागकर तदनंतर समयमें सम्यक्त्व और संयमको एक साथ ग्रहण करने वाला होता है । - सम्यक्त्व प्रकृति की उत्कृष्ट प्रदेशउदीरणा समयाधिक पावली काल से युक्त अक्षीणदर्शनमोही कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि के होती है।
१ मिच्छत्तस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा कस्स ? संजमाभिमुह चरिमसमय-मिच्छाइट्ठिस्स से काले सम्मत्तं संजमंच पडिबज्जमाणस्स (१५४९)