SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६२ ) गुण स्थान सस्त्र स्थान विशेष विवरण प्रथम तीन २८-२५-२६ द्वितीय वृतोय २८-२४ मार्यसुर्थीक :- आचार्य श्रीपराविधिसागर जी महारा४, २३, २२, २१ पंचम पांच पूर्ववन् पष्टम पांच पूर्ववत सप्तम पांच पूर्ववत् अष्टम (उपशम श्रेणी)| तीन २८, २४, २१ अनम (क्षपक श्रेणी) नयम (पशम श्रेणी) | तीन २८, २४, २१ नवम ( क्षपक श्रेणी) नौ दशम ( उ० श्रे०) तीन -४-२१ दशम ( ज्ञ० अंक)पक १ सूक्ष्मलाभ उपशांत भोझ चीन २८-२४-२१ मोहनीय के बंध स्थान दश कहे गए हैं । उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है। मिथ्यात्व गुणस्थान में मिथ्यात्व, १६ कषाय, एक बेद, भय-जुगुप्सा तथा हास्यरति अथवा अरतिशोक रुप युगल मिलकर २२ प्रकृतिक बंध स्थान हैं। सासादन में मिथ्यात्व रहित २१ प्रकृति का बंध स्थान है। मिश्र गुणस्थान तथा अविरत सम्यक्त्वी २१ - ४ = अनंतानुबंधी रहित १७ प्रकृतिक बंध स्थान है । संयतासंयत के अप्रत्याख्यानावरण रहित १७-४१३ प्रकृतिक स्थान है । संयत के प्रत्याख्यानावरण रहित १३ - ४ = १ प्रकृतिक स्थान है । यही क्रम अप्रमत्त संप्रत तथा अपूर्वकरण गुणस्थानों में है। अनिवृत्तिकरण में भय-जुगुप्मा तथा हास्य रति रहित पांच प्रकृतिक स्थान है। पुरुषवेद का बंध रुकने पर वेद रहित अवस्था में संज्वलन ४ का बंध होगा । क्रोध रहित के ३ प्रकृति का, मानरहित के दो प्रकृतिका, माया रहित के केवल लोभ के बंध रुप एक प्रकृतिक
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy