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स्थान है । इस प्रकार २२,२१,१७,१३, ९, ५, ४, ३, २, १ प्रकृतिरुप दश बंध स्थान हैं ।
बंध स्थान की प्रकृतियां सत्य स्थानों
की संख्या
સમ
२२ प्रकृतिक स्थान
1"
32
२१
१७- १३ ..
५ प्रकृतिक स्थान
"
73
४
१
"
73
-E
ן,
57
"
35
विवरण
२८–२७–२६
मार्गदर्शक:- अरिवार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
२८, २४, २३, २२, २१
पांच
छुट्ट
सास
चार
चार
चार
२८, २४, २३, २२, २१, ११ पूर्ववत् तथा ४
२८, २४, २१ तथा ३
२८, २४, २१, २
२, २४, २१. १
एक एक सत्वस्थान को आधार बनाकर बंध तथा संक्रम स्थानों का तथा संक्रम स्थान को आधार बनाकर सत्व तथा बच स्थानों के परिवर्तन द्वारा द्विसंयोगी भंगों को निकालने का कथन गाथा में किया गया है 1 सूक्ष्म तत्व के परिज्ञानार्थी को जयधवला टीका का परिशीलन करना उपयोगी रहेगा ।
प्रकृतिस्थान संक्रम
'सादि य जहासंकमकदिखुत्तो होइ साथ एक्के क्के । अविरहिद सांतरं केवचिरं कदिभाग परिमाण ॥५७॥
१ सादिजष्णगहण सादि प्रणादि-भुव श्रद्धव सव्व-पोसव उक्कस्सा प्णुक्कस्स-जहृष्णाजहण्ण--संकम-सण्णियासणमणियोगद्दाराणं संगहो कायव्यो । संकमग्गहण मे देसिमणियोगद्दाराणं पयडिट्ठाण संकम वसमत्तं सूचेदि । कदिखुत्तो एदेणप्पाबहुप्राणियोगारं सूचिदं । 'अविरहिद' गहणेण एयजीवेण कालो सांतरग्गहणेण वि एयजीवेणंतरं सूचिदं । केवचिरं ग्रहणेण दोन्हं पि विसेसणादो कदि च भागपरिमाण मिच्वेदेण भागाभागस्स संगहो कायब्धो ।