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. विध्यातसंक्रमण-जिन कर्मों का गुणप्रत्यय या भवप्रत्यय से जहां पर बंध नहीं होता, वहां पर उन कर्मों का जो प्रदेश संक्रमण होता है, उसे विध्यात संक्रमण कहते हैं। ___गुणस्थानों के निमित्त से होने वाले बंध को गुण-प्रत्यय कहते हैं । जैसे मिथ्यात्व के निमिमध्यावाई कसविनिमप्रसताहाराज सृपाटिका संहनन, एकेन्द्रिय जाति प्रादि सोलह प्रकतियों का बंध होता है । आगे के सासादन गुणस्थान में इन मिथ्यात्व निमित्तक मोलह प्रकृतियों की बंध व्युच्छित्ति हो जाने से इनका बंध नहीं होता। वहां उक्त प्रकृतियों का जो प्रदेशसत्व है, उसका पर प्रकृतियों में संक्रमण होता है। इस संक्रमण को विध्यात संक्रमण कहते हैं।
जिन प्रतियों का मिथ्यात्व आदि गुणस्थानों में बंब संभव है, फिर नरक, देव आदि भव विशेष के कारण { प्रत्यय ) बश वहां उनका बंध नहीं होता, इसे भव प्रत्यय प्रबंध कहते हैं । जैसे मिथ्यात्व गुणस्थान में एकेन्द्रिय जाति, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण प्रादि प्रकृतियों का बंध होता है, किन्तु नारको जीवों के नरकभव के कारण उनका बंध नहीं होता है, कारण नारकी जीव मरकर एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते हैं। वे मरकर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक कर्मभूमिया मनुष्य अथवा तिर्यंच में हो पैदा होते हैं। "णेरयियाणं गमणं सप्णीपज्जत्त-कम्मभूमि-तिरियणरे ।" उन नारकी जीवों के जो पूर्व में बांधी एकेन्द्रियादि प्रकृतियां थीं, उनके प्रदेशों का परप्रकति रुप से संक्रमण होता रहता है । यह भी विध्यात संक्रमण है। यह संक्रमण प्रधः प्रवृत्तसंक्रमण के रुकने पर ही होता है। __ अधः प्रवृत्तसंक्रमण---सभी संसारी जीवों के १ ध्र व-बंधिनी प्रकतियों के बंध होने पर तथा स्व-स्व भवबंध योग्य परावर्तन प्रकृतियों के प्रदेशों का जो प्रदेश संक्रमण होता है, वह अधःप्रवृत्त सक्रमण हैं। ... १ घादिति-मिच्छ-कसाय-भयतेजदुग-णिमिण-वण्णचनो।
सत्तशालधुवाणं चदुधा सेसाणयं च दुधा-गो, क. १२४