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( मंगल के त्याग के समान सराग संयम के परित्याग का भी प्रसंग आयगा, क्योंकि सराग संयम के द्वारा भी पुण्य का बन्ध होता है । सरागसंयम का परित्याग करने पर मुक्तिगमन का प्रभाव हो जायगा । परमागम में उपयोग लगाने पर नियम से मंगल का फल प्राप्त होता है। इस विशिष्ट अर्थ को अवगत कराने के उद्देश्य से मार्गदशधर भुद्धात श्री धमें नहीं किया—
इंद्रभूति गौतम गणधर ने सोलह हजार मध्यम पदों के द्वारा कषाय प्राभूत का प्रतिपादन किया। एक पद में कितने श्लोकों का समावेश होता है, उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार किया गया है :
कोडि इकावन आठहि लाख | सहस चौरासी छह सौ भाखं । साढ़े इक्कीस श्लोक बताये । एक एक पद के ये गाए ।
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एक पद के पूर्वोक्त श्लोकों में सोलह हजार का गुणा करने पर जो संख्या उत्पन्न होती है, उतने श्लोक प्रमाण रचना गणधर देव ने की थी, उसका उपसंहार करके इस रचना के प्रमाण के विषय में गुणधर भट्टारक कहते हैं
गाहासदे असीदे अत्थे पण्णरसधा बित्तम्मि | बोच्छामि सुत्तगाहा जयि गाहा जम्मि अत्थम्मि ॥ २ ॥
इस ग्रंथ में एक मौ अस्सी गाथासूत्र हैं, जो पंचदश प्रर्थाधिकारों में विभक्त है । जिस अर्वाधिकार में जितनी सूत्र गाथाएँ प्रतिबद्ध हैं, उन्हें मैं कहूँगा ।
विशेष :- यहां ग्रंथकार ने स्वरचित गाथाओं को 'माहासुत्त' गाथा सूत्र कहा है । इस सम्बन्ध में शंकाकार कहता है। :―