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संयमासंयम को लब्धि द्वादशम अधिकार तथा चारित्रकी लब्धि त्रयोदशम अधिकार इन दो अधिकारों में एक ही गाथा है। चारित्र मोहकी उपशामनापाई अधिकारी माविमायाग जी म्हाराज चत्वारि य पठ्चए गाहा संकमाए त्रि चत्तारि । ओवट्टणाए तिण्णिा दु एक्कास होति किट्टीए ॥७॥
चारित्रमोह की क्षपणा के प्रस्थापक के विषय में चार गाथा है। चारित्रमोह के संक्रमण से प्रतिबद्ध चार गाथा है। चारित्रमोह को अपवर्तना में तीन गाथा हैं । चारित्रमोह की क्षपणा में जो द्वादश कृष्टि हैं, उनमें एकादश गाथा हैं । चत्तारि य खवणाए एक्का पुण होदि खीणामोहस्स। एक्का संगहणीए अट्ठावीस समासेण ॥८॥
कृष्टियों की क्षपणामें चार गाथा हैं। क्षीण मोह के विगय में एक गाथा है। संग्रहणी के विषयमें एक गाथा है। इस प्रकार चारित्र-मोहकी क्षपणा अधिकार में समुदाय रुप से अट्ठाईस गाथा है।
किट्टीकय-वीचारे संगहणी खीणमोहपट्ठवए । सत्तेदा गाहाओ अण्णाओ सभासगाहाओ ।।६।।
कृष्टि संबंधी एकादश गाथाओं में चोचार सम्बन्धी एक गाथा, संग्रहणी सम्बन्धी एक गाथा, क्षीणमोह प्रतिपादक एक गाथा, चारित्र मोह की क्षपणा के प्रस्थापक से संबद्ध चार गाथा ये सात गाथाएं सुत्र गाथा नहीं हैं। इनके सिवाय शेष इक्कीस गाथा सभाप्य गाथा अर्थात् सूत्र गाथा हैं !१
१. 'किट्टीकयवीचारे' त्ति भणिदे एक्कारसण्हं किट्टिगाहाणं
मज्झे एक्कारसमी बोचारमूलगाहा एक्का । 'संगहणी' त्ति भणिदे संगहणिगाहा एकका घेतब्वा । 'खीणमोह' इत्ति मणिदे