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पंच यतिण्णि यदोछक्क चउक्क तिण्णिा तिणि एक्काय। चत्तारि य तिगिण उभे पंच य एक्कं तह य छक्कं ॥११॥ तिण्णिा य चउरोतह दुगचत्तारि य होति तह चउक्कंच। दो पंचेव य मानकापणाचायका विनगद याहाहाई २ ___ इक्कीस सूत्र गाथाओं की भाष्य रूप गाथाओं की संख्या पांच, तीन, दो, छह; चार, तीन, तीन, एक, चार, तीन, दो, पांच, एक, छह, तीन, चार, दो, चार, चार, दो, पाच, एक, एक, दस और दो, इस प्रकार छ्यासी गाथाएं हैं ।
विशेष—इनमें इक्कीस सूत्र गाथा, सात · असूत्रः गाथा को जोड़ने पर चारित्रमोह के क्षपणा-अधिकार में निबद्ध गाथाओं की संख्या ( २१+७+८६ = ११४ ) एकसौ चौदह होती है। इनमें चौदह अधिकार सम्बन्धी चौसठ गाथात्रों को जोड़ने पर एक सौ अठहत्तर ( ११४+ ६४ = १७८ ) गाथाए होती हैं ।
अब कषाय पाहुड के पंचदश अर्थाधिकारों का प्रतिपादन करने के लिए गुणधर भट्टारक दो सूत्रगाथाओं को कहते हैं :पेज्ज-होसविहत्ती द्विदि-अणुभागे च बंधगे चेय । वेदग-उवजोगे वि य चउट्ठाण-वियंजणे चेय ॥१३॥ सम्मत्त-देसविरयी संजम उवसामणा च खवणा च । दंसण-चरित्तमोहे अद्धा-परिमाण णिवसो॥ १४ ॥ ___ दर्शन और चारित्र मोह के सम्बन्ध में (१) प्रेयोद्वेष-विभक्ति (२) स्थिति-विभक्ति (३) अनुभाग विभक्ति (४) अकर्मबन्ध की अपेक्षा बंधक (५) कर्मबंधक की अपेक्षा बंधक (६) वेदक (७) उपयोग (८) चतुःस्थान ९) व्यंजन (१०) दर्शनमोहकी उपशामना (११) दर्शनमोहकी क्षपणा [१२] देशविरति [१३] संयम [१४] चारित्र मोहकी उपशामना [१५] चारित्रमोहको क्षपणा ये पंद्रह प्राधिकार हैं। इन समस्त अधिकारों में श्रद्धापरिमाण का निर्देश करना चाहिये।