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बावीस परारसगे सत्तग एगारसुरावीसाए । तेवीस संकमो पुरा पंचसु पंचिदिए
हवे ॥३१॥
तेईस प्रकृतिक स्थान का संक्रम बाईस, पंद्रह सत्रह, ग्यारह तथा उन्नीस प्रकृतिक पंच स्थानों में होता है । यह स्थान संज्ञी पंचेन्द्रियों में ही होता है ।
चोइसग दसग सत्तग अहारसगेच शियम वावीसा । |ियमा भरगुसगईए विरदे मिस्से अविरदे य ॥ ३२ ॥
बाईस प्रकृतिक स्थान का संक्रम नियम से चौदह, दस, सात और अठारह प्रकृतिक स्थानों मनुष्य गति में ही विरत, देशविरत तथा अविरत सम्यक्त्वो गुणस्थानों में होता है । २
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराजू
तेरसय गवय सत्तय सत्तारस पाय एककवीसाए । एमाधिए वीसाए संकमो छप्पि सम्मत्ते ॥ ३३ ॥
एकाधिकate प्रकृतिक स्थान का संक्रम तेरह, नौ, सात, सत्रह पांच तथा इक्कीस प्रकृतिक छह स्थानों में सम्यक्त्वयुक्त गुणस्थानों में होता है ।
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एतो अवसेसा संजमम्हि उवसामगे च खवगे च । वीसाय संक्रम- दुगे छक्के पणगे व बोद्धव्वा ॥३४॥
पूर्वोक्त स्थानों से शेष बचे संक्रम और प्रतिग्रह स्थान उपशमक और क्षपक संयतके ही होते हैं ।
१ पंचिदिएस चेव तेवीससंकमो णाणत्थे त्ति घेतव्वं । तत्थवि सणी पंचिदिए चैव णासणीसु ( १००० )
२ पियमा मणुसईए । कुदो एस नियमो ? सेसगईसु दंसणमोहक्खणाए श्रणुपुव्विसंकमस्य वा असंभवादो ।