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न पाठशाला
खामगांव जि. बुलडाणा
( ४७ )
मिथ्यात्व का संक्रमणकाल जघन्य से अंतर्मुहूर्त है, उत्कृष्ट से साधिक छ्यासठ सागर है ।
सम्यक्त्वप्रकृतिका संक्रमणकाल जघन्य से अंतर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्टसे पल्योपमके असंख्यातर्वे भाग प्रमाण है । सम्यग्मिथ्यात्व के संक्रमणका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है, उत्कृष्टकाल "बे छावट्टिसागको बह्माणि. सादिया बाकि दिगोपन है ।
चारित्र मोहनीय की पंचविशति प्रकृतियों का संक्रमण काल श्रनादि - अनंत, श्रनादि-सांत तथा सादि- सान्त कहा है। सादि सान्त काल की अपेक्षा उक्त प्रकृतियों का संक्रमण काल जघन्यसे अन्तमुहूर्त है, उत्कृष्टसे 'उबड्ढपोग्गलपरियट्ट ' – उपार्थपुदगल परिवर्तन है ।
मिथ्यात्व त्रिक के संक्रमण का जघन्य विरहकाल अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट उपार्धंपुद्गलपरिवर्तन है । सम्यग्मिथ्यात्व के संक्रमण का जघन्य अन्तरकाल एक समय है ।
अनंतानुबंधी के संक्रमणका जघन्यतरकाल अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक द्विछयासठसागर है ।
चारित्र मोहनीय की शेष इक्कीस प्रकृतियों का संक्रमण संबंधी जघन्य अन्तरकाल एक समय है, उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। गतियों की अपेक्षा संक्रमण पर प्रकाश डालते हुए चूर्णिकार कहते हैं ।
नरकगति में सम्यक्त्व प्रकृति के संक्रामक सर्व स्तोक अर्थात् सबसे अल्प हैं । मिथ्यात्व के संक्रामक उससे असंख्यात गुणे हैं । उससे सम्यग्मिथ्यात्व के संक्रामक विशेषाधिक हैं । अनंतानुबंधी के संक्रामक उससे प्रसंख्यातगुणे हैं। शेष मोह के संक्रामक परस्पर तुल्य और विशेषाधिक हैं ।