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श्री चंद्रप्रभु (२३)
: ' पगाला
खान बुटाणा समाधान-नहीं, क्योंकि जो अपमृत्यु से रहित हैं. किन्तु जिनका शरीर हिंसक प्राणियों के द्वारा भक्षण किया गया है ऐसे चरम शरीरी जीवों के उत्कृष्ट रूपसे भी अंतर्मुहूर्त प्रमाण आयु के शेष रहने पर ही केवलज्ञान की उत्पत्ति होती है। इससे ऐसे जीवों के केवलज्ञान का उपयोग काल वर्तमान पर्याय की अपेक्षा अंतर्मुहूर्त से अधिक नहीं होता है।
शंका--(१) तदभवस्थ केवलज्ञान का उपयोगकाल कुछ कम पूर्व कोटि प्रमाण पाया जाता है, अतः यहां अंतहत प्रमाण काल क्यों कहा गया. आचार्य श्री सुविहिासागर जी महाराज
समाधान--जिनका आधा शरीर जल गया है तथा जिनकी देह के अवयव जर्जरित किए गए हैं, ऐसे केवलियों का विहार नहीं होता, इस बात का परिज्ञान कराने के लिए यहां केवलज्ञान के उपयोग का उत्कृष्ट काल अंतर्मुहूर्त कहा है ।
यहां उपसर्गादि को प्राप्त तदभव केबली की विवक्षा को
पेज्जदोस विहत्ती नामके प्रथम अधिकार से प्रतिबद्ध गाथा को कहते हैं:पेज्जं वा दोसो वा कम्मि कसायम्मि कस्स व रणयस्स। दुट्टो व कम्मि दव्वे पियायदे को कहिं वा वि १२१
किस किस कषाय में किस नय की अपेक्षा प्रेय या द्वेष का व्यवहार होता है ? कौन नय किस द्रव्य में द्वेष को प्राप्त होता है तथा कोन नय किस द्रव्य में प्रिय के समान आचरण करता है ? - १ तब्भवत्थकेवलुवजोगस्स देसूपापुवकोडि-मेत्तकाले संते किमट्टमेसो कालो परुविदो ? दड्ढद्ध गाणं जर्जरीकयावयवाणं च केवलीणं विहारो पत्थि त्ति जाणावगट्ठ ।