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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ( ४४ )
कर्म संक्रम (१) प्रकृति संक्रम (२) स्थिति संक्रम (३) अनुभाग संक्रम (४) तथा प्रदेश संक्रम के भेद से चार प्रकार का है ।
'पडिस्कमो दुविहो' – प्रकृति संक्रम के दो भेद हैं (१) एकैकप्रकृति-संक्रम ( २ ) प्रकृति-स्थान संक्रम ।
प्रकृति-संक्रम प्रकृत है । उसमें तीन सूत्र गाथाएं हैं । संकम उवक्कम विही पंचविहो चउव्विहोय शिक्खेवो । यविपयं पयदे च णिग्गमो होइ अट्ठविहो ॥ २४ ॥ एक्काए संकमो दुविहो संकमविही य पयडीए । संकमपडिग्गविही पडिग्गहो उत्तम - जहराणो ॥ २५॥
पयडि - पयडिट्ठाणेसु संकमो असंकमो तहा दुविहो । दुविहो पडिग्गविही दुविहो अपडिग्गहविही य ॥२६॥
योग्यता "Hey savio संक्रम की उपक्रम विधि पांच प्रकार है । निक्षेप चार प्रकार है । नयविधि प्रकृत है । प्रकृत में निर्गम आठ प्रकार है ||२४|| "दूर असण
प्रकृति संक्रम दो प्रकार है- एकैकप्रकृति संक्रम तथा प्रकृतिस्थानसंक्रम ये दो भेद हैं । संक्रम में प्रतिग्रहविधि कही है। वह उत्तम श्रर्थात् उत्कृष्ट तथा जघन्य भेद युक्त है ॥२५॥
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संक्रम के दो प्रकार हैं । एक प्रकृति संक्रम, दूसरा प्रकृतिस्थान संक्रम है। असंक्रम, प्रकृति-प्रसंक्रम तथा प्रकृतिस्थान असंक्रम दो भेद युक्त है । प्रतिग्रह विधि प्रकृतिग्रह और प्रकृतिस्थान प्रतिग्रह भेद युक्त है। प्रतिग्रह विधि के प्रकृति अप्रतिग्रह और प्रकृतिस्थान श्रप्रतिग्रह दो भेद हैं ॥ २६ ॥
विशेषार्थ - संक्रम को उपक्रमविधि के प्रानुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता और अधिकार ये पांच भेद हैं। निक्षेप के द्रव्य, क्षेत्र,