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( ३२ ) अणुभाग वित्ती
अनुभाग विभक्ति में अनुभाग के विषय में प्ररूपणा की गई है ! मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज शंका- ' को प्रणुभागो' ? अनुभाग का क्या स्वरूप है ?
समाधान - 'कम्माणं सगकज्जकरणसत्ती अणुभागो नाम'आत्मा से सम्बद्ध कर्मों के फलदान रूप स्वकार्य करने की शक्ति को अनुभाग कहते हैं ।
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१ उस अनुभाग के भेद, प्रपत्र अथवा विभक्ति का प्ररूपण करने वाले अधिकार को अनुभाग विभक्ति कहते हैं । उसके दो भेद हैं । एक भेद मूलप्रकृति अनुभाग विभक्ति है । दूसरे का नाम उत्तर प्रकृति अनुभाग विभक्ति है । भूतबलि स्वामी ने महाबंध ग्रंथ में चौबीस अनुयोग द्वारों से आठ कर्मों के अनुभाग बंध का विस्तार पूर्व निरूपण किया है । महाबंध में लिखा है "एदेण अपदेण तत्थ इमाणि चवीस- प्रणियोगराणि णादव्वाणि भवति । तं जहा सण्णा सब्वबंधो, णोसव्वबंत्रशे, उक्कस्सबंधी, प्रणुक्कस्सबंधी जहण्णबंधो, अजहष्पबंधो, सादिबंधो, प्रणादिबंधो, ध्रुवबंधी एवं याव अप्पाबगे ति । भुजगारबंधो पर्दाणिवखेवो वढिबंधो ग्रभवसाप, समुदाहारो जीवसमुदाहारो त्ति" । इस कषायपाहुड ग्रंथ में केवल मोहनीय का विवेचन किया गया है । इसमें तेईस
१ तस्य वित्ती भेदो पवंचो जम्हि महियारे परुविज्जदि भगवती । तिस्से दुवे अहियारा मूलपयडि - प्रणुभाग विहृत्ती उत्तरपयडिप्रणुभागविहत्ती चेदि । मूलपयडि - अणुभागस्स जत्य हित्ती परुविज्जदि सा मूलपयडि - श्रणुभागविती । उत्तरपयडीण मणुभागस्स जत्य विहत्ती परुविज्जदि सा उत्तरपयडिप्रणुभागविहत्ती ( ५१८ )
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