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शंका- नारकियों में निरन्तर द्वेषाग्नि जला करती है। वहां राग या श्रानन्द का अस्तित्व कैसे माना जावे ?
समाधान---ताड़न, मारण तथा तापन यादि क्रूर कार्यों में जब कोई नारकी सफल होता है, तब कुछ काल के लिए वह आनंद को प्राप्त होता है; इस दृष्टि से वहां 'पेज्ज' का सद्भाव माना गया है ।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
देवों में लोभ कषाय की मुख्यता रहने से राग भाव वाले अधिक हैं। नारकियों में द्वेष की प्रचुरता रहने से वहां द्वेषभावयुक्त जीव अधिक हैं। मनुष्यों और तिर्यंचों में द्वेष भाव धारक जीव अल्प हैं। रागभावयुक्त जीव विशेषाधिक है ।
पेज्ज और दोस भाव युक्त जीवों के प्रदयिक भाव कहा है । यहां पेज दोस-विभक्ति अधिकार समाप्त होता है ।
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